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दृष्टांत : २४१-२४२
२४१. जद एक हो जावे भेषधारी कहै-म्हे एक छां । अन भीखणजी न्यारा है।
जद किण ही कह्यौ-थारे माहोमाहि वणे नहीं नै भीखणजी सू चरचा रौ काम पड़यां एकै क्यूं थावौ।
जद भेषधारी बोल्या-रजपूतां रै भायां-भायां रै तौ माहोमाहि वणे नहीं पिण चोर नै काढ़वा सर्व एकै होय जावै ।
ए बात स्वामीजी सुणीने दृष्टंत दीयौ-वास-वास रा कुतां रै माहोमाहि तो कजीयो। उण वास रा कुत्ता दूजा वासवाळा नै आवा दै नहीं। दूजा वासवाळा स्वान उण वासवाळा नै आवा दे नहीं । आपस मै माहोमाहि कजीया घणा करै। अनै हाथी नीकळ्यां सगळा भेळा होयनै भूसवा लाग जावै । त्यां स्वान रै माहोमाहि कद एको थौ ? पिण हाथी री वेळां सर्व एकै होय जावै। ___इसौ स्वान रौ स्वभाव। ज्यं भेषधारी माहोमाहि उवे तो उणारी श्रद्धा खोटी कहै । उवे उणांरी श्रद्धा खोटी कहै, माहोमाहि अनेक बोलां रौ फेर आपस मै केयक साध पिण न सरधै । अने साधां सूं चरचा रौ काम पड़े जद स्वान ज्यं एक होय जावै ।
२४२. ठंडी रोटी जीव क अजीव केयक तौ लाळ वाळी ठंडी रोटी मै बेंद्री जीव कहै । पगां मै बाळा ज्यूं रोटी में लाळा, ज्यं कहै अनै केयक टोळा वाला ठंडी रोटी बहिर नै परही खाए छै । जिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयौ-कोई मूठी भर्या चणां गोहूं खावै तौ उणनै साधु कहीजे के असाधु कहीजै ?
जद ते बोल्या -- गोहूं खाए तिणनै तो असाध कहीजै ।
जद स्वामीजी बोल्या-गोहूं खाए तिणने असाधु कहीजै लटां खाए जिणने साधु किम कहिये । जे ठंडी रोटी में जीव कहै त्यांरे लेखे ठंडी रोटी खाए ते लटां रा खाणहार । ते ला रा खाणहार में साधु किम कहिये । इण न्याय ठंडी रोटी में जीव कहै त्यांर लेखै ठंडी रोटी खावणहार असाध ठहर्या ।
अन जे ठंडी रोटी खाए त्यांने पूछोज-झूठ बोले ते साध के असाध ? जद ते कहै असाध।
जद स्वामीजी बोल्या-थे तो ठंडी रोटी नै अजीव कही अन उवे बेइंद्री जीव कहै । इम थारै लेखै इज झूठाबोला । उणां ने कहोज-त्यां झूठाबोला . नै साधु किम कहीजे?
तथा थे तो ठंडी रोटी नै अजीब कहो अन उवे ठंडी रोटी मै जीव कहै ।