________________
दृष्टांत : १८८-१८९
१८८. आहार उनमान स्यूं द्यो सं० १८५६ रै वर्स नाथ दुवारै चौमासौ पांच साधां तूं कीधौ। भारमलजी स्वामी (१) खेतसीजी स्वामी (२) हेमजी स्वामी (३) तो एकंतर करता । स्वामीजी आठम चवदस रा उवास करता। उदैरामजी बेलैबेलै पारणौ । पारणां मै आम्बिल।
खेतसीजी स्वामी उदैरामजी नै आहार अधिकौ देव। जद स्वामीजी वरज्यौ । बेला रौ पारणौ है आहार उनमान सू दौ। तो पिण अधिक देवा री चेष्टा देखनै स्वामीजी फुरमायौ-खेतसी ! उदरांमजी री मोत थारे हाथै हुंती दीसै है।
स्वामीजी रौ वचन आय मिल्यो कितलायक वर्सी पछै मारवाड़ मै इगसढ़ री साल उदरांमजी आंबल बर्द्धमान तप करतां इकतालीस ओली तो हुई एक अठाई कीधी। अठाई रौ पारणौ खारचीयां कीधौ। डील मै कारण जांणनै चेलावास भारमलजी स्वामी कनै आवतां कारोलीया गाम मै थाका।
जद भोपजी तपसी चेलावास आयनै समाचार कह्या। जद खेतसीजी स्वामी हेमजी स्वामी भोपजी तपसी जाय भोपजी रै खांधे बैसाण चेलावास लेय आया । घास रौ बिछावणी करनै कह्यौ--आप लिखणी कांई करो, उदैरामजी स्वामी नै पाणी पावो । जद खेतसीजी स्वामी, हेमजी स्वामी दोनं जणां आया । खेतसीजी स्वामी मौरां पाछै हाथ देयन बैठा कीधा। इतले आंख्यां फेर दीधी। भारमलजी स्वामी फरमायौ--सरधौ तौ थारै च्यारूई आहार नां त्याग है । खेतसीजी स्वामी रा हाथ मैहीज चालता रहा।
जद खेतसीजी स्वामी कह्यौ-मोनै स्वामीजी फुरमायौ थो के खेतसी! उदैरांमजी री मोत थारै हाथ आवती दीस है। सो म्हारा हाथ मैं ईज चल गया। स्वामीजी रौ वचन आय मिल्यौ।
१८९. आ तो रोत थेट रो है
सोजत रा बाजार मै छत्री त्यां स्वामीजी विराज्या। वरजजी नाथांजी आदि सात आर्यां और गाम थी आया। स्वामीजी नै आय बंदणां कीधी। उतरवा नै जागा चाहीजै।
जद स्वामीजी पोतै ऊठ नै नजीक उपाश्री जड़यौ हूंती त्यां आयां रै साथै आया । बोल्या-छैरे कोई भायौ इण उपाश्रा री आज्ञा देणवालो।
जद एक भायो बोल्यौ-म्हारी आज्ञा है । और जागां तूं कुंची ल्यायन कमाड़ खोल दीया। पछै माहै आर्यां नै उतारने आप पाछा ठिकाणे