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वरंगचरिउ 6. कुछ शब्दों में दो स्वरों के बीच स्थित ख, घ, थ, ध, फ और भ के स्थान पर ह का प्रयोग हुआ है, यथा
ध = ह, पयोधर = पयोहर (4/1) भ = ह, सौभाग्य = सोहग्ग (4/3), त्रिभुवन = तिहुयण (3/21)
ह, रोधन = रोहणु (3/5), निधि = णिहि (3/1) घ = ह, निघात = णिहाउ (3/6)
= ह, सुखकर = सुहयरू (3/7), रेखा = रेह (3/9) फ = ह, सफल = सहलउ (3/11)
= ह, पथिकजन = पहियण (1/3) 7. ट के स्थान पर ड; ठ के स्थान पर ढ और प के स्थान पर व पाया जाता है, यथाट = ड, घटित = घडिउ (3/6), कटक = कडअ (3/11), सुभट = सुहड (1/6). ठ = ढ, कठिन = कढिण (1/8) प = व, कतिपय = कइवइ, आतापित = आयावइ (3/2) 8. कुछ शब्दों में अल्प प्राण वर्गों के स्थान पर महाप्राण वर्ण पाये जाते हैं, यथास्तुति = थुत्ति (1/10), प्रशस्त = पसत्थ (1/2) 9. कुछ शब्दों में दन्त्य व्यंजन के स्थान पर मूर्धन्य व्यंजन का प्रयोग हुआ है, यथारोषानल = रोसाणलु (1/12), अतिवेदन = अइवेयणु (3/2) 10. ह्म के स्थान पर म्भ आदेश हुआ है, यथाब्रह्मचर्य = बम्भचेरु (1/16) 11. ट के स्थान पर क्वचित् ल हुआ है, यथाट = ल; क = ह, स्फटिक = फलिह
12. य और श के स्थान पर क्रमशः ज और स तथा ष के स्थान पर छ या ह का प्रयोग हुआ है; यथा
य = ज, युधिष्ठर = जुहिडिलु, संयतं = संजय, यदि = जइ, युवराज = जुवराय (4/5)