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वरंगचरिउ देवनन्दि पूज्यपाद देवनन्दि से भिन्न हैं और उनके पश्चात्वर्ती हैं। इनका ‘रोहिणीविहाणकहा' नामक ग्रन्थ उपलब्ध है। रचना की शैली के आधार पर कवि का समय 15वीं सदी माना जा सकता है।
कवि अल्हू
। इन्होंने 'अणुवेक्खा' नामक ग्रन्थ की रचना कर संसार की अनित्यता, अशुचिता, असारता आदि का स्वरूप प्रस्तुत किया है। आत्मोत्थान के लिए अणुवेक्खा का अध्ययन उपयोगी है। रचना की भाषा और शैली से कवि का समय 16वीं सदी प्रतीत होता है।
जल्हिगल
। इन्होंने 'अनुपेहारास' नामक उपदेशप्रद ग्रन्थ लिखा है। इसमें अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओं का स्वरूपांकन किया है। कवि के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती है। अनुमानतः कवि का समय विक्रम की 15वीं शताब्दी प्रतीत होता है। पं. योगदेव
__पं. योगदेव कुम्भनगर के मुनिसुव्रतनाथ चैत्यालय में बैठकर "बारसअणुवेक्खारास" नामक ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ भी 15वीं-16वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। कवि लक्ष्मीचन्द
लक्ष्मीचन्द ने 'अणुपेक्खादोहा' की रचना की है। इसमें 47 दोहे हैं। सभी दोहे शिक्षाप्रद और आत्मोद्बोधक हैं। इनका समय भी 15वीं-16वीं शताब्दी के आस-पास है। कवि नेमिचन्द्र
नेमिचन्द 15वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने रविव्रत कथा, अनन्तव्रत कथा आदि ग्रन्थों की रचना की है।
1. भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृ. 242 2. वही, पृ. 242 3. वही, पृ. 243 4. वही, पृ. 243 5. वही, पृ. 243