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वरंगचरिउ मात्र ज्ञात है। तृतीय धनपाल अपभ्रंश में रचित 'बाहुवलिचरिउ' (बाहुवलिचरित) के रचयिता है, जिनका समय 15वीं शताब्दी कहा गया है। ये गुजरात के पुरवाड वंश के तिलक स्वरूप थे। इनकी माता का नाम सुहडादेवी और पिता का नाम सुहडप्रभ था। भट्टारक श्रुतकीर्ति
भट्टारक श्रुतकीर्ति कृत 'धर्म परीक्षा का समय (रचना काल) वि.सं. 1552 है। यह काव्य कविवर हरिषेण की धर्म परीक्षा के आधार पर लिखा गया है। कथानक का ही नहीं, वर्णन का भी अनुगमन किया गया है, अतएव दोनों में बहुत कुछ साम्य लक्षित होता है। अद्यावधि इसकी एक ही अपूर्ण प्रति उपलब्ध है।' डॉ. हीरालाल जैन के अनुसार प्रस्तुत कृति का कथानक हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश दसवीं संधि के छठे कडवक तक पाया जाता है। अनन्तर उसी संधि में ग्यारह कडवक और हैं, फिर ग्यारहवीं संधि में सत्ताईस कडवकों की रचना है, जिनमें श्रावक धर्म का उपदेश दिया गया है। यह भाग श्रुतकीर्तिकृत धर्म परीक्षा से विच्छिन्न हो गया। सम्भवतः वह सातवीं संधि में ही पूरा हो गया। कवि ठक्कुर
कवि ठक्कुर 16वीं शताब्दी के अपभ्रंश तथा हिन्दी भाषा के कवि थे। इनका जन्म स्थान चाकसू (राजस्थान), जाति खण्डेलवाल तथा गोत्र अजमेरा था। इनके पिता का नाम घेल्ह था, जो स्वयं एक अच्छे कवि थे। कवि का रचनाकाल वि.सं. 1578-1585 कहा गया है। पं. परमानन्दजी शास्त्री के अनुसार कवि ने वि.सं. 1578 में 'पारससवण सत्ताइसी' नामक एक ग्रन्थ की रचना की थी, जो ऐतिहासिक घटना को प्रस्तुत करती है और कवि ने स्वयं के आंखों देखा वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त 'जिनचउवीसी', कृपणचरित्र (वि.सं. 1580) 'पंचेद्रियबेलि' (वि.सं. 1585) और नेमीश्वर की बेली आदि की रचना भी की थी। ____ परन्तु डॉ. कासलीवाल ने कवि की नौ रचनाओं का उल्लेख किया है-1. पार्श्वनाथ शकुनसत्तावीस (वि.सं. 1575), 2. मेघमालाव्रतकथा (वि.सं. 1580), 3. कृपणचरित्र (वि.सं. 1585), 4. शीलबत्तीसी (वि.सं. 1585), 5. पंचेन्द्रियबेलि (वि.सं. 1585), 6. गुणवेलि, 7. नेम राजबलिबेलि, 8. सीमन्धरस्तवन, और 9. चिन्तामणिजयमाल। इनके अतिरिक्त कुछ पद भी प्राप्त हुए, जो विभिन्न गुटकों में संग्रहीत हैं। शाह ठाकुर
रचना में इनका नाम शाह ठाकुर मिलता है। अभी तक इनकी दो रचनाएं ही उपलब्ध हो सकी हैं। एक अपभ्रंश में निबद्ध है और दूसरी हिन्दी भाषा में। 'शान्तिनाथचरित्र' एक अपभ्रंश
1. राजस्थान का जैन साहित्य, सं. अगरचन्द नाहटा आदि, प्राकृत भारती, जयपुर, 1977, पृ. 145 2. डॉ. हीरालाल जैन : श्रुतकीर्ति और उसकी धर्मपरीक्षा, अनेकान्त में प्रकाशित लेख, अनेकान्त, वर्ष-11, किरण-2, पृ. 106 3. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल-अलभ्य ग्रन्थों की खोज, अनेकान्त में प्रकाशित, वर्ष 16, किरण 4, पृ. 170-171