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वरंगचरिउ मांगल्यं भवतु ।छ। समस्त क्षेममस्तु ।।थ।। N, प्रति की विशेषताएं :- यह प्रति A, प्रति से कॉपी की गई हो ऐसा प्रतीत होता है। 1. इस प्रति में 'ए' की मात्रा हमेशा अक्षर के ऊपर न होकर आगे होती है। इस प्रवृति की बहुलता है। जैसे - कहेइ/काह। प्रति प्रशस्तियों की प्रमाणिका :
___A, K, N, प्रतियों तथा उनकी प्रशस्तियों में मूलसंघ, बलात्कारगण के जिन भट्टारकों एवं मुनिराजों तथा खंडेलवालान्वय में पाटनी, सावड एवं साह गोत्रों में उनके श्रद्धालु श्रावकों तथा प्रतिलेखन स्थानों के नाम आये हैं। उनका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या है, इस पर चर्चा करना उचित होगा।
दिगम्बर जैन संघ के इतिहास में बलात्कारगण का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है और जैन साहित्य की सुरक्षा एवं संवर्धन में इस गण के भट्टारकों, मुनियों तथा श्रद्धालु-श्रावकों का अभूतपूर्व एवं अनुपम योगदान रहा है। केवल साहित्य ही नहीं, जैन धर्म सम्प्रदाय और जैनतीर्थों व मंदिरों की सुरक्षा, प्रचार-प्रसार और निर्माण में भी सदैव ही इस संघ का बहुत बड़ा हाथ रहा है। ___ यद्यपि इस गण का उद्भव आचार्य कुंदकुंदाचार्य से माना जाता है और तदनुसार इसके साथ कुंदकुंदाचार्यान्वय, नंद्याम्नाय, सरस्वतीगच्छ आदि पद भी जुड़े रहते हैं, परन्तु इस गण का प्रथम उल्लेख आचार्य श्रीचन्द्र ने किया है, जो धारानगरी के निवासी थे और जिन्होंने सम्वत् 1070, 1080 से 1087 में क्रमशः पुराणसार, उत्तरपुराण एवं पद्मचरित की रचना की थी। यहीं से इस गण की ऐतिहासिक परम्परा चालू होती है और विक्रम की 15वीं शती तक जाती है। दक्षिण में इस गण की कारंजा एवं लातूर शाखाएं वि. की. 16वीं शती से प्रारम्भ होकर वर्तमान तक चल रही है। ___बलात्कार की उत्तरशाखा मंडपदुर्ग (मांडवगढ़ राजस्थान) में भट्टारक बसंतकीर्ति के द्वारा सं. 1264 में प्रारम्भ हुई तथा विशालकीर्ति, शुभकीर्ति, धर्मचंद्र, रत्नकीर्ति एवं प्रभाचंद्र भट्टारक से होती हुई भट्टारक पद्मनंदी (सं. 1385-1450) तक आकर उनके बाद दिल्ली जयपुर ईडर एवं सूरत इन तीन प्रमुख शाखाओं में विभक्त हो गयी। दिल्ली जयपुर शाखा में से दो और उपशाखाएं निकलीं। नागौर शाखा एवं अटेरशाखा। अटेरशाखा में से सोनागिर प्रशाखा, ईडरशाखा से भानपुर उपशाखा और सूरतशाखा से जेरहट उपशाखा बनी। इन सबका दीर्घकालीन इतिहास है और इनमें से बहुत से भट्टारक पीठ आज भी विद्यमान हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि बलात्कारगण की शाखा, उपशाखा और प्रशाखाएं सम्पूर्ण उत्तरभारत में व्याप्त थीं। दिल्ली, जयपुर, हरियाणा में आज का कुरुक्षेत्र तथा उत्तरप्रदेश में मेरठ व आगरा के संभाग इन समस्त प्रदेशों में बलात्कारगण के भट्टारकों, मुनियों तथा भक्त श्रावकों द्वारा निरंतर धर्म व साहित्य की सुरक्षा और संवर्धन का