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वरंगचरिउ
211 'रणमल' नाम जानो जो गुणों से भरा था, उसके लघु भ्राता 'वल्लाल' हुए जो जिन कल्याण में लगे रहते थे, फिर उनसे छोटे ईश्वर (ईसरू) उत्पन्न हुए, वह दयागुण के राजा के रूप में अभी विद्यमान थे। ___पोल्हण नाम के चौथे भाई प्रसिद्ध है, जिन्होंने अपने पुण्य से बहुत द्रव्य (धन) प्राप्त किया था। यह चारों भाई विख्यात खंडेलवाल वंश में उत्पन्न हुए। रणमल के पुत्र ताल्हुप हुए, उनका पुत्र मैं अनेक गुणों से युक्त हुआ। तेजपाल मेरा नाम प्रसिद्ध है। जिनवर की भक्ति करके अनेक गुणों (बुधगुण) को प्राप्त किया, दान, शील (आचरण) और जिनवर के चरणों का भक्त हूँ। ___घत्ता-कर्मों के क्षय के कारण, दोषों को दूर करने के लिए भक्तिपूर्वक मैंने रचना की है। जो पढ़ता है और पढ़वाता है तथा रुचि सहित इस चरित्र को मन में भाता है।
___24. अंतिम शिक्षा/स्वाध्याय की प्रेरणा यह शास्त्र जो सुनता है और सुनाता है, यह शास्त्र जो लिखता है और लिखवाता है। यह शास्त्र जो पृथ्वी पर विस्तारित करता है (प्रचार-प्रसार), वह नर शीघ्र ही चिरकाल के पापबंधन को दूर करता है, फिर वह भविकजन शिवपुरी (मोक्ष) प्राप्त करता है। जहां पर जरा-मरण कभी भी नहीं आता है। पृथ्वी पर दयावान राजा आनंदित होता है, व्रतवान श्रावकजन आनंदित होते हैं। पृथ्वी पर जिनेन्द्र देव का धर्म बढ़ता है, जनपद में सभी में क्षमा बढ़ती है। समय-समय पर वारिस बरसती है, सम्पूर्ण लोक दयागुण से उल्लसित होते हैं। अजित मुनि का संघ भी आनंदित होता है। सभी काल में लोग जिनेन्द्र देव के दर्शन करते हैं। जो कोई भी हीनाधिकता सहित काव्य का निर्वाह करता है, वह सरस्वती माता मुझे क्षमा करें और अन्य पंडित जन मुझे मतिदोष दें।
घत्ता-जो नर दयावान है, निर्मल चित्तवाला, नित्य ही जिनदेव की आराधना करता है। वह अपनी आत्मा का ध्यान कर, केवलज्ञान पाकर वह मुक्ति वधु को प्राप्त करता है।
मुनि विपुलकीर्ति की कृपां से पण्डित तेजपाल विरचित इस वरांगचरित में वरांगकुमार के सर्वार्थसिद्धिगमन नाम का चतुर्थ संधि परिच्छेद समाप्त हुआ। संधि-411