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वरंगचरिउ
199 भी दी। जीती हुई विशालपुरी दी गई एवं फिर देवसेन की श्रेष्ठ वर्णयुक्त माला दी गई।
घत्ता-इस प्रकार देश एवं बड़े प्रदेश प्राप्त करके कुमार पृथ्वी पर राज्य करता है। अबाधित प्रताप होता है और वह निर्मल स्वभाव से युक्त होता है। सम्माननीय मानव के रूप में विद्यमान होता है।
15. कुमार द्वारा धार्मिक कथन इस प्रकार नरपति (राजा वसंग) सुख भोगते हुए, एक दिन अंतःपुर (रनिवास) में पहुंचता है। वहाँ आसन पर बैठा हुआ था, सभी स्त्रियां भी आकर बैठती हैं। हे प्रिय! जो जरा और व्याधि का नाश करने वाला है वह धर्म की औषधि सुनाओ। जिनवर ने जिसे सुख का भाजन (पात्र) कहा है। दयायुक्त सभी जीवों के दुःख का निवारण करने वाला-हे स्वामी! सम्पूर्ण धर्म कहिए।
राजा कहता है-सर्वप्रथम देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्चा श्रद्धान करना चाहिए, वह धर्म दशविधि अंग रूप कहा गया है, सच्चे देव अठारह (18) दोषों से रहित होते हैं। वह गुरु है जो निग्रंथ, तप को सहन करते हैं एवं ईर्यासमिति पूर्वक सभी जीवों पर दया रखते हैं। जिनेन्द्र देव की वाणी आगम में कही गई है, सुखकारी सम्यग्दर्शन को दृढ़ता से धारण करना चाहिए। व्रत, तप, संयम आदि सभी धर्म को प्रकाशित करते हैं उन्हें आचार धर्म कहा गया है।
जो श्रावक जिनव्रतों का पालन करता है, उसके (नीचे वाली) जिनप्रतिमा देखी जाती है। रमणीय जिनदेव का मन्दिर बनवाना चाहिए, जिसका शिखर अत्यन्त ऊँचा और चन्द्रमा रूप वर्णित हो। फिर चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाना चाहिए, जो सभी के लिए कल्याणकारी है। प्रतिष्ठा करके सुगंधित अष्ट द्रव्यों से पूजा करना चाहिए।
घत्ता-जिनदेव की पूजा करते हुए, भक्ति धारण करते हुए, संसार के सभी दोषों का नाश करते हैं, मनुष्य अनुपम सुख को प्राप्त करता है, असमर्थ होने पर भी शाश्वत सुख का प्रकाश करता है।
16. मन्दिर एवं प्रतिष्ठा महोत्सव मुनि-वरदत्त के वचन सुनकर, दोनों हाथ जोड़कर अनुपमा देवी कहती है-हे देव! एक कृपा कीजिए, आकाश छूता हुआ शिखर मानो ऊँचा पर्वत हो एवं प्रिय अधरबिम्ब चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की गजरथ-प्रतिष्ठा करवाईये। जिनमंदिर के बारे में वचन सुनकर, शीघ्र ही उनके द्वारा