________________
वरंगचरिउ
163 सवार होकर गमन किया, योद्धाओं ने रथ हांकना प्रारंभ किया।
घत्ता-इस प्रकार श्रेष्ठ सेना सहित राजा के द्वारा इन्द्रसेन गमन किया गया। जिस प्रकार राजा जरासंध बलवान राजा थे वैसे ही सेना ने प्रस्थान किया।
खंडक-जब योद्धाओं का समूह चलता है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो समुद्र हिल रहा हो। अनेक प्रकार के आयुध (अस्त्र-शस्त्र) धारण करके कलह की विधि को करने आयुध सहित सेना चलती है।
11. सेना का गमन इस अवसर पर नगर की कोई स्त्री अपने पति से आगे (भविष्य में होने वाली वीरता) कहती है-हे प्रिय! आखिरी निद्रा को ले लो, शीघ्र राजा लेने के लिए आते होंगे। कोई कहती है-स्फटिकमणि एवं मोतियों के समान तुम निर्मल चमकीले हो। जिस हार आदि से मैं अंगों को सजाती हूँ-हे स्वामी! उनकी सार्थकता तुम्हारे साथ है। कोई कहती है-हे नाथ! सोना लाना। शत्रुओं के कुल पर विजय प्राप्त करके या लूटकर मुझे सोने से सुशोभित करना।
प्रिय पति से कहती हैं कि हे नाथ! सुनो-संग्राम का निनाद सुनकर आ जाओ। कुछ दिनों शीतल जल को पियो, दुष्कर वीर संग्राम में मत मरना। इस प्रकार यहां पर उनके कथन सुनते हुए वीर पति, सुनने के प्रयोजन की इच्छा से आगे आते हैं और फिर सामने चलते हैं। कई दिनों तक दिन-दिन में गमन करते हैं, अपने देश की नदी, सरोवर को छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। शत्रु के देश के मध्य में वह कूच/छावनी प्रविष्ट हुई। हे भट समूह! गाँव को बस में करो। महान इन्द्रसेन की आज्ञा सुनकर सेना पालन करती है। श्रेष्ठ शत्रुओं को बल धारण करते हुए प्राप्त करो। वहां रथवान, आगे श्रेष्ठ हाथी, घोड़ा आदि को सामने देखकर पुनः राजा (देवसेन) अपने मन में विचार करता है-चलते हुए वह मेरे नगर में प्रवेश हो गए हैं। शत्रु दुष्कर है और बल भी असंख्यात है, युद्ध भूमि की अभिलाषा के अनुसार क्या किया जाये। इस प्रकार छल से अंदर प्रविष्ट हुए को विचार करके शत्रुओं की वाद्य ध्वनि को सजा हुआ देखा। जहां सेना के घिराव का परिमाण सजा हुआ था, शत्रुओं का कूच वहां पहुंचा। इस प्रकार चारों ओर से नगर को घेर लिया, जिस प्रकार कर्म समूह संसार में घेरे रहता है। ___घत्ता-दूसरों के बल से वह राजा धैर्य रखता है। जहां पर गुणदेवि का पुत्र वरांग विद्यमान था, जिसकी भुजाएँ ऐरावत हाथी की तरह थी। प्रभु देवसेन मन में शंकित हुआ।