SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 128 वरंगचरिउ 7 इम' चेंतिऊण' पुणो रायउत्तो तुमं रुवदेउव्व मुत्ती पसण्णो तुमं वि पुत्तुव्व सोहावहारो इमं करिवि सुपसंस तहि वार- वारं समाणेवि सो उवहिविद्धी पउत्तो सुतत्थाउ संचलिउ वक्खह कहंतो पुणो जाव मग्गेण गीयाण रत्तो सुसंखाए छद्दु ण सहस्साइ कुद्धा ' हणु-हणु करंतावि सुणिइट्ठ गीया आएवि वज्जरिउ सुणि सत्थराया सुऊत व सज्जियउ वरसत्थु मुणिऊण वणिविंदु भड्डु चल्लिउ जा सकोहा सलोहा मणे जुद्ध कामा वलावेवि लग्गा रणे जे वि धीरा पुणो वणिवरहं सत्थु कलिउसि जुद्धे पमुत्तूण वाणावली भिण्णयंगा सुहाहारउ जायउ सव्व सत्थे घत्ता - णिय भडभग्गं तयहं रणे, उवहिविद्धि कंपियउ किहं । अइ पवणहि पेरिउ पत्तगणु फग्गुणि कंपइ वप्प जिहं । । दुवई - तामा लोइ सिट्ठि णिवणंदणु वुच्चइ गिरिव धीरउ । मा भीहहि वणीसम इत्थंतइ तुह वरधम्म धीरउ ।। ७ ।। 8 सुवायाइ आसासिउ धम्मसत्तो । तुमं सव्वलोयाण दिट्ठी रवण्णो । तुमं देवणरपियहं चित्तावहारो । पुणो दिण्णु आहारखिरसपयारं । तुमं हि महु सत्थि आणंदयत्तो । जिणाचक्क बलवासुदेवा महंतो । सकरो किरायागणो ताव पत्तो । सुणाणाउ हा हत्थि धारेवि मुद्धा | तो सिट्टिवर दूव मणि भयहु भीया' । तुमं उवर वणर समाया - समाया । लहु हणहु ते दुट्ठ मा देहु णियअत्थु । पहुत्ता किरायासमीव वस्स तहो ताम । पपिच्छंत भइया वणाअंग सामा । पपिच्छेवि सत्थाइ लग्गा अधीरा । किरायास सत्थेहिं किं किद्धु लुद्धे । वणीसावणा मुणिवि ते सव्व भग्गा । किराट्टायणा कंपिया जीव अत्थे । इय पयंपि रणसम्मुह चल्लिउ कडियलि वंधिउ तोणा जुयालउ गहिउ सरासणु णंदावत्तउ जिम पंचाणणु उवरि कुरंगहो वणयरगण दव्वीयर खगवइ सरधोरण सम्मुह अगणंतउ दिस गयंदुणावइ उ हल्लिउ । असिवरु गिहिवि करि जलविमलउ । लयउ कुंत कय जीविय चत्तउ । तिम सम्मुह धायउ वि वरंगहो । कम्मवलइ भंजण णं जिणवइ । जाइवि कुमरु रणगणि पत्तउ । 6. 1. K, ज्जुयालउ 7. 1. A,N, इमं 2. A, K, N, चेंतुऊणं 3. K, सहस्साई 4. N, कुद्ध 5. N,सीया
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy