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वरंगचरिउ
101 करके दरिद्रता का पात्र होता है एवं बंधुजन (परिवारजन) और अपनी पत्नी को भी छोड़ता है। जुआ के कारण राजा युधिष्ठिर परिवार सहित बारह वर्ष तक वन में रहे। जुआ से भयानक दुःख की प्राप्ति होती है, जुआ का कौतूहल असार है, जुआ में रमते हुए अपने मनुष्य भव को हार जाता है, उससे अपने आपका ही संहार होता है। इस प्रकार जानकर जुआ नहीं खेलना चाहिए और अपने मनुष्य भव को सार्थक करना चाहिए। जो मांस का करुणा रहित होकर सेवन करता है, वह अपने आपको दुर्गति में गिराता है। जो जंगल में मृगादि का भक्षण करता है, उसके समान अन्य कोई पापी नहीं है। जो जिह्वा की लंपटतावश मांस का भक्षण करता है, वह कुत्ते के समान जड़ का जड़ है। ‘मांस' मूत्र, क्षुद्र जीव आदि से परिपूर्ण अशुभ पिण्ड है एवं उसमें अन्य त्रस-स्थावर भी विद्यमान होते हैं, वह अपने मृत शरीर को उसी में छोड़ते हैं जो किसी से भी छिपा नहीं है। धर्मवान मनुष्य तो देखता भी नहीं है और पापी पापबुद्धिपूर्वक सदा भक्षण करता है।
घत्ता-जो उक्त दोषों को जानकर मांस भक्षण को छोड़ता है, वह अपनी आत्मा का चिंतन करता है, व्रतों के प्रभाव से सुख को प्राप्त करता है। जो मांस की आशा में जीवों का नाश करता है वह नित्य ही नरक निवास को प्राप्त करता है।
12. मद्यपान, वेश्यागमन व्यसन वगुराजा भी मांस भक्षण से व्याकुल हुए और असहनीय दुःख रूपी समुद्र में पड़ते हैं। इसी प्रकार से मदिरा दोष को भी कहता हूँ। हे राजन्! सुनो मैं तुमको कहता हूँ, मदिरा में मस्त व्यक्ति किसी को भी नहीं जानता है, माँ, बहिन और स्त्री को समान मानता है। मदिरा में मदमस्त होकर तुरन्त ही मार्ग में पड़ता है और उसके मुंह में कुत्ता मूत्र छोड़ता है। मद्य में मस्त मनुष्य के वचनों को कोई नहीं मानता है। माता-पिता और परिजन तिरस्कार करते हैं। वह गाता, बोलता, नाचता और खिलखिलाता है और अपने आपको दुःखसागर में गिराता है। विकलेन्द्रिय होकर क्रोध रूप अग्नि को धारण करता है, अन्य का नाश करता है अथवा यहां तक कि स्वयं का संहार भी करता है। जीवों की निगोद-राशि परिपूर्ण है और पापरूपी वृक्ष बढ़कर उन्नत हो रहा है। मांस-भक्षण और मद्य (शराब) में कोई भी अंतर नहीं है क्योंकि अन्य जन्म में दोनों निरन्तर दुःख को देते हैं, दूसरा दोष यह है कि दोनों नरक के कारण हैं। व्यक्ति मद्य का सेवन करके सम्पूर्ण पापों का उपार्जन करते हैं। यह जानकर व्रतों की रक्षा करना चाहिए और मद्य में आसक्त पुरुषों की संगति का त्याग करना चाहिए। छप्पन-करोड़ यादव योद्धा भी शराब का सेवन करते हुए यमपुरी को प्राप्त हुए थे। इस प्रकार से दोषों को सुनकर लज्जित होना और व्रतों के नाशक व्यसन का मन में चिन्तन करना चाहिए, जो मांस और शराब का कुत्सितता से भक्षण करता है, वह नित्य ही झूठ वचनों को कहता है।