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श्लो. : 1
लाकर अथवा बिना निबंधन किये नमस्कारात्मक (नमस्कार किया गया हो) वह अनिबद्ध - मंगल है, दोनों में से कोई एक मंगल करना अनिवार्य है ।
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
आचार्य-देव ने ग्रन्थ के मंगल में अनेकान्त - स्याद्वाद् शैली का प्रयोग कर मुमुक्षुओं को मार्ग दिखाया है । कथन एकान्त रूप नहीं होता है, कथन अनेकान्त रूप होता है । एक ही पदार्थ एक ही समय में अनन्त-धर्मात्मक होता है, कोई भी धर्म पदार्थ से कभी भिन्न नहीं होता, परन्तु धर्मों को एक-साथ कहा नहीं जा सकता है, इसलिए गौण किया जा सकता है, पर अभाव किसी भी धर्म का नहीं किया जा सकता, जो पुरुष तत्त्व की अनेकान्त-विवक्षा को समझे बिना कथन करता है, वह एकान्त - आग्रह से ग्रसित है। जो एकान्त से अपने चित्त को दूषित करता है, वह जिन - शासन के अनुसार स्व-पर का शत्रु है। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने स्पष्ट रूप से अनेकान्त-दृष्टि-शून्य व्यक्ति को स्व-पर का वैरी कहा हैएकान्त-ग्रह-रक्तेषु नाथ! स्व-पर-वैरिषु ।।
- आप्तमीमांसा, श्लो. 8 हे नाथ! जो एकान्त ग्रह से अनुरक्त लोग हैं, वे स्व-पर के बैरी हैं। तात्पर्य समझना - एकान्तवादी स्वयं की आत्मा का अहित कर ही रहा है, अपने विवेक को खोकर, एकान्त दृष्टि से ही द्रव्य को देखकर मिथ्यात्व के गर्त में निमग्न है और अनेक भव्यों को स्वयं के अहं को पुण्य करते हुए हल बुद्धि से नाना प्रकार के प्रलोभनों एवं वाक्पटुता से एकान्त का उपदेश देकर उन्हें सन्मार्ग से च्युत कर मिथ्यान्ध-कूप में डाल रहा है, इसलिए एकान्त - दूषित - चित्त वाला स्व-पर का शत्रु है । ज्ञानियो ! शरीर के एक अंग को भंग करने वाला इतना घातक नहीं है, जितना घातक एकाक्षी विद्वान् है, कारण- शरीर के अंग का घात पर्याय को छिन्न कर रहा है, परंतु एकाक्षी विद्वान् हमारे परिणामों का एवं सिद्धांतों का घातक है।
मनीषियो! तत्त्व-बोध की रुचि है, तो स्याद्वाद् - शैली का आश्रय लेकर ही ग्रहण करें, बिना स्याद्वाद् के विद्याध्ययन न करें, न कराएँ, स्याद्वाद् पद से युक्त वक्ता का वचन ही परमागम में शोभा को प्राप्त होता है । उभय नय के विरोध का अभाव " स्यात् " पद से हो जाता है। बिना स्यात् पद के आलम्बन लिये जो कथन करता है, वह वक्ता उभय तीर्थ का नाशक है । व्यवहार एवं निश्चय दोनों नयों का कथन बराबर करना चाहिए, कारण-कार्य, साधन-साध्य वाली व्यवस्था उसके बिना बन नहीं सकती, एक नय पर विशेष जोर देने वाले भी क्या एक नय का आश्रय लेकर