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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
आभार और अभिवादन आदरणीय विवरेण्य प्रो. डॉ. वृषभप्रसाद जी जैन, लखनऊ ने ग्रन्थ के सम्पादन में अत्यन्त परिश्रम किया है। उनके साथ आदरणीय डॉ. शीतलचन्द्र जी, जयपुर व आदरणीय डॉ. श्रेयांस कुमार जी, बड़ौत ने भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। परमपूज्य आचार्य-श्री के चरण-सान्निध्य में इन विद्वानों ने एकाधिक बार बैठकर सम्पूर्ण आलेख पर सुविस्तृत चर्चा की, संशोधन, संवर्द्धन के माध्यम से इस ग्रन्थ को और अधिक जनोपयोगी बनाने में जो श्रम-सहयोग किया है, वह स्तुत्य है। वयोवृद्ध विद्वान् आदरणीय प्रो. श्री लक्ष्मीचंद जी, जबलपुर ने प्रस्तावना लिखकर चार-चाँद लगा दिये हैं। मैं उपरोक्त सभी विद्वानों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। चि. आनन्द जैन, वाराणसी ने ग्रन्थ की प्रूफ-रीडिंग कर इसे दोष-मुक्त बनाने में अकथनीय श्रम किया है, मैं धन्यवाद-सहित उनके योगदान की सराहना करता हूँ|
मैं सतना दिगम्बर जैन समाज की कार्यकारिणी व सभी पुण्यार्जकों के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने जिनवाणी के भंडार को समृद्ध करने में अपना सहयोग उदारता-पूर्वक प्रदान किया है और इसतरह से परमपूज्य आचार्य-श्री के प्रथम आचार्य-दिवस के आयोजन को चिर-स्मरणीय बना दिया है।
__ अन्त में मैं परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज के श्री-चरणों में बारम्बार नमोस्तु करता हूँ, जिन्होंने अत्यन्त करुणा-पूर्वक सर्व-जन-हितार्थ इस ग्रन्थ की टीका करके इस ग्रन्थ के हार्द को सुस्पष्ट करके माँ जिनवाणी के भंडार में एक दैदीप्यमान रत्न की अभिवृद्धि की है, उनके श्री-चरणों में शत-शत प्रणाम। आचार्य-श्री के सम्पूर्ण संघ के श्री-चरणों में सादर नमोस्तु।
इस ग्रन्थ के सम्पादन, पाद-टिप्पण, पारिभाषिक शब्दों के अर्थान्वयन से लेकर प्रकाशन तक प्रमाद-वश जहाँ जो त्रुटि रह गई हो, उसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी/दोष मेरा है। आप इन त्रुटियों से मुझे परिचित करायेंगे, तो आपकी कृपा होगी। “स्वरूप-संबोधन-परिशीलन" ग्रन्थ भव्य भावुक जनों के स्वाध्याय का अभिन्न अंग बने, बस, मैं यही कामना करता हूँ|
__सिं. जयकुमार जैन संयोजक : प्रकाशन व प्रबंधन-संपादक
जैन समाज, सतना