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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
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चरण पड़े गुरुवर के सतना में..... वर्ष 2008 मार्च माह में हम-सभी के विशेष पुण्य का उदय हुआ। परमपूज्य आचार्यश्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज का स-संघ शुभागमन सतना नगर में हुआ। आचार्य-श्री ने "स्वरूप-संबोधन" ग्रन्थ पर अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज में अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर दी। परमपूज्य आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज ने 31 मार्च 2007 महावीर (जयंती) के दिन परमपूज्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज को आचार्य-पद पर प्रतिष्ठित किया था। हम सभी को आचार्य-पदारोहण की प्रथम वर्ष-ग्रन्थि पर आचार्य विशुद्धसागर जी के पाद-प्रक्षालन का अपूर्व सुअवसर प्राप्त हो रहा था। जैन समाज सतना ने भक्ति और भावना से भरपूर एक अतिस्मरणीय समारोह के माध्यम से आचार्य-श्री सहित सम्पूर्ण संघ की वन्दना की, सामूहिक पूजन का अभूतपूर्व आयोजन हुआ, आचार्य-श्री की पद-वन्दना हेतु प्रदेश और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं ने उपस्थित होकर अपने जीवन को धन्य किया।
इस पावन दिवस व महोत्सव की स्मृति को चिर-स्थायी बनाये रखने व सम्पूर्ण समाज के कल्याणार्थ जैन समाज, सतना ने परमपूज्य आचार्य श्री से "स्वरूप-संबोधन" की टीका लिखने व उसे सतना-समाज द्वारा प्रकाशित कराने की भावना प्रकट की।
ऐसे जागे भाग्य हमारे आचार्य-श्री के सतना से बिहारोपरान्त अमरपाटन में जनसभा में (तिवरी) कटनी में पंचकल्याणक के समय एवं आचार्य-संघ के जबलपुर चातुर्मास-काल में मंच पर श्री-फल भेंट कर सतना जैन समाज ने पुनः अपनी प्रार्थना दुहराई। करुणा और वात्सल्य से ओत-प्रोत परमपूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने सतना समाज की उत्कंठा, आग्रह और विनय को अपना शुभाशीष देते हुए अपनी स्वीकृति प्रदान की।
परमपूज्य आचार्य श्री का वर्ष 2008 में श्री दिगम्बर जैन वोर्डिंग मंदिर, जबलपुर में चातुर्मास संपन्न हुआ। सतना के समाज के विभिन्न बन्धु बीच-बीच में जबलपुर जाकर आचार्य-श्री से निवेदन करते रहे और आचार्य-श्री भी मनोयोग पूर्वक "स्वरूप-संबोधन" पर अपनी लेखनी के माध्यम से इसके रहस्यों को उद्घाटित करते रहे। ____ अक्टूबर 2008 में आचार्य-श्री ने “स्वरूप-संबोधन-परिशीलन" के कुछ अंशों को जैन समाज, सतना के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र जी को सौंपा, श्री राजेन्द्र जी ने ग्रन्थ-प्रकाशन की जिम्मेदारी मुझे देते हुए मुझ पर एक भारी उत्तरदायित्व सौंप दिया। मैं अल्पज्ञ, शारीरिक और मानसिक अनेक परेशानियों से घिरा होने के बावजूद परमपूज्य आचार्य श्री के आशीर्वाद की छाँव तले इस महान कार्य को पूर्ण करने के लिए तत्पर हुआ।