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श्लो. : 15
परंतु उससे अधिक तीव्रतर में होती है और उससे भी अधिक निर्जरा विशुद्धि-स्थानों की वृद्धि तीव्रतम होने पर होती है । द्वितीय पक्ष में कषाय- अंश जब मन्द होते हैं, तब तीव्र कषाय की अपेक्षा आस्रव भी मन्द होता है, मन्दतर में और कम आस्रव होगा एवं मन्दतम में अति-अल्प आस्रव होगा, इस आस्रव-बन्ध में जब हम कार्य-कारण-भाव घटित करते हैं, तब जीव के भाव अन्तरंग - कारण समझना। कारण-कार्य-भाव को जो नहीं समझना चाहते, वे न समझते ही हैं, वे जिन - शासन के रहस्यों से पूर्ण अनभिज्ञ हैं, जिन - शासन से अनभिज्ञ, यानी वस्तु - व्यवस्था के ज्ञान से शून्य हैं, - ऐसा समझना चाहिए, वस्तु-व्यवस्था को समझने के लिए कारण-कार्य-भाव को समझना अनिवार्य है, जो पुरुष निमित्त को नहीं मानते, वे अज्ञ कारण कार्य को क्या समझ पाएँगे!... मात्र शुद्धात्मा शब्द को ही समझ पाएँगे, पर वे शुद्धात्म- द्रव्य को नहीं समझ पाएँगे, न ही प्राप्त कर पाएँगे, प्राप्ति पुरुषार्थ से होती है, पुरुषार्थ ही कारण-कार्य-भाव-व्यवस्था है, ध्यान रखना- जो निमित्त को नहीं स्वीकारते, वे पुरुषार्थ को कैसे मान सकेंगे? क्योंकि यहाँ पर कहा है कि पुरुषार्थ ही कारण -कार्य-भाव है, ज्ञानी! यह विषय-कथा वस्तु नहीं, वस्तु-व्यवस्था की विवेचना है, इसे समझने के लिए परिपूर्ण-एकाग्रता चाहिए, प्रज्ञा को पूरी तरह शान्त करके समझना पड़ेगा । पुरुषार्थ को कार्य-कारण क्यों कहा?... - ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं कि ज्ञानी ! पुरुषार्थ किसके लिए ...... जिसके लिए है, वह क्या है ?... पुरुष = आत्मा, अर्थ = प्रयोजन। आत्मा जिस अर्थ को चाहता है, वह अर्थ उसके लिए साध्य है, प्राप्ति का उपाय साधन है, अर्थ कार्य तथा उपाय कारण है। बिना कार्य-कारण के पुरुषार्थ शब्द का कोई अर्थ ही नहीं निकलता, तर्क रूढ़ि से कहने में प्रत्येक जीव स्वतंत्र है; पर रूढ़ि रूढ़ि है, शब्दार्थ शब्दार्थ है, जो जैसा नहीं, फिर वैसा ही कहना उपचार - रूढ़ि है, जिसका कोई निश्चय अर्थ होता है, शब्दकोश, व्याकरण - शास्त्र से वह शब्दार्थ है, संज्ञाएँ कुछ रूढ़ होती हैं, कुछ अन्वयार्थक होती हैं । कारण-कार्य-भाव, निमित्त - उपादान हेतु हेतुमद्भाव को नहीं समझ पाए, तो ध्यान रखना- उनके यहाँ तत्त्व - बोध एवं बोधि की प्राप्ति तो घटित होना अश्व-विषाणवत् तो है ही, उनके यहाँ भोजन-कार्य भी व्यर्थ होता है। भोजन करते हैं, पानी पीते ही हैं, फिर भी निमित्त - उपादान कारण-कार्य-भाव नहीं समझ सके, यह या तो हठग्राहिता है, या फिर पूर्ण की शून्यता का प्रमाण-पत्र है । आपकी भाषा में ही आप समझ लें कि भोजन करने से उदर भरता है, उदर भरने से क्षुधावेदना शान्त होती है। ज्ञानी! भोजन कारण है, क्षुधा - वेदना का उपशमन कार्य है, ये
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
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