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अशरण भावना
२. धम्मं सरणं पवज्जामि
मगध जनपद का मण्डीकुक्ष उद्यान । जन-जन के चित्त को लुभाने वाली उसकी सुरम्यता । वह विश्रान्तों का विश्राम देने वाला, रोगियों को आरोग्य देने वाला और अमुदितों को प्रमुदित करने वाला था। वहां ही हरित वनराजि आंखों को प्रीणित करने वाली और प्राणीमात्र में प्राणसंचार करने वाली थी। प्रभात की नवरश्मियां अपने आलोक से जन-जीवन को अभिस्नात कर रही थीं । पथिकों की क्लान्ति को हरता हुआ सुरभित पवन भीनी-भीनी सौरभ से महक रहा था । प्राभातिक प्राकृतिक सुषमा सबको आनन्द और स्वास्थ्य से भर रही थी ।
मगधाधिपति सम्राट् श्रेणिक अपने महामात्य और अंगरक्षकों के साथ प्राकृतिक सुषमा का आनन्द लेते हुए उद्यान में प्रातः काल का भ्रमण कर रहे थे। उनके अनिमेष नेत्र उद्यान की छटा और सौन्दर्य में अनुरक्त बने हुए प्रफुल्लता अनुभव कर रहे थे। वहां का चप्पा-चप्पा प्रकृति का दिग्दर्शन कराता हुआ मानो प्राकृतिक जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा था। कहीं सूर्यविकासी कमल अपनी उत्फुल्लता प्रदर्शित कर सूर्य का सत्कार कर रहे थे तो कहीं गुलाब, चम्पक, मालती आदि के पुष्प आगन्तुकों का अभिनन्दन कर रहे थे, कहीं आम्रकुंज में कुहुकती कोयलें अपने मधुर गान से लोगों को आकर्षित कर रही थीं तो कहीं निम्ब, पलाश, अशोक और तमाल आदि के वृक्ष अपनी सघन छाया से प्रीति उत्पन्न कर रहे थे। कहीं मृगशावक क्रीड़ा करते हुए दौड़ते नजर आ रहे थे तो कहीं शुक, सारिका, मैना आदि पक्षी एक डाल से दूसरी डाल पर फुदक रहे थे। कहीं घोड़ों की टापों को सुनकर मयूर केकारव कर रहे थे तो कहीं रंगबिरंगे पक्षी पंखों को फैलाकर नील गगन में उड़ने की तैयारी कर रहे थे।
ऐसे मनोहारी दृश्य से प्रसन्नमना महाराज श्रेणिक वन सुषमा को निहारते हुए चंक्रमण कर रहे थे। सहसा उनके चरण एक निकुंज के समीप जाकर रुक