________________
मिथ्यात्व के छह विकल्प हैं१. नास्त्येवात्मा आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है। २. न नित्यात्मा आत्मा नित्य नहीं है। ३. न कर्ता
आत्मा स्वयं कर्म का कर्ता नहीं है। ४. कृतं न वेदयति __ कृतकर्म का वेदन नहीं है। ५. नास्ति निर्वाणम् मोक्ष भी नहीं है। ६. नास्ति मोक्षोपाय मोक्ष प्राप्ति के उपाय भी नहीं हैं।
यह मिथ्या दृष्टि मिथ्यात्व आश्रव है। तत्त्वार्थ सूत्र में उमास्वाति ने आश्रव की परिभाषा इस प्रकार व्याख्यायित की है-“काय वाङ् मनः कर्मयोगः स आश्रवः” काय, वचन और मन की क्रिया योग है। वही आश्रव है।
आश्रव के द्रव्यास्रव, भावास्रव-ऐसे दो विभाग और भी हैं। जीव की विकारी मनोदशा भावास्रव है। उस समय नए कर्म-परमाणुओं का स्वतः आत्मा के एक क्षेत्र में आना द्रव्यास्रव है। भावास्रव, द्रव्यास्रव का कारण है। द्रव्यास्रव कार्य है। कषायों के कारण भावास्रव की स्थिति तैलयुक्त शरीर जैसी और द्रव्यास्रव की स्थिति है उड़ती हुई धूल का शरीर पर चिपक जाना।
अविरति-(Want of self-restraint) अविरति यानी विरति का अभाव। भीतर में एक प्यास है, आग है, अतृप्त चाह है, कुछ पाने की अदम्य आकांक्षा है। उसका जो स्रोत है वही अविरति है। अविरति से चंचलता बढ़ती है, सक्रियता बढ़ती है। अथवा यों कह सकते हैं कि अमर्यादित एवं असंयत जीवन प्रणाली ही अविरति आस्रव है।
मनोविज्ञान में मन के तीन स्तर हैं- अदस मन, अहं मन, अधिशास्ता मन।
अदस मन—इसमें आकांक्षाएं पैदा होती हैं। जितनी भी प्रवृत्त्यात्मक आकांक्षाएं और इच्छाएं हैं वे सभी इसी मन से पैदा होती हैं।
अहं मन-समाज व्यवस्था की ओर से जो नियंत्रण प्राप्त होता है उससे आकांक्षाएं नियंत्रित हो जाती हैं। वे कुछ परिमार्जित हो जाती हैं। अहं मन इच्छाओं को क्रियान्वित नहीं करता।
अधिशास्ता मन—यह अहं पर भी अंकुश रखता है। अविरति यानी छिपी हुई चाह। विभिन्न प्रकार की तमन्नाएं हैं। उन्हें कर्मशास्त्र में अविरति कर्मवाद; उसका स्वरूप और वैज्ञानिकता -
- ९५.