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________________ 'महिमागर मुनिवर! २३. 'सुधरी' पूज्य पधारै ‘सोजतरोड़' स्यूं रे, संग सम्पदा भारी श्रमण-सत्यां री रे। पुरजन ठाकुर-साहिब सामेळो सझ्यो रे, बड़ी हाजरी गढ़ में छटा अटारी रे।। २४. अद्भुत आभा जमी धर्म री जागृति रे, पुरपति दो दुर्गुण गुरु-चरण चढ़ावै रे। दीक्षोत्सव मर्यादोत्सव प्रेरक कथा रे, ढाळ आठवीं 'तुलसी' गणपति गावै रे।। ढाळः ६. दोहा १. सुधरी रै इतिहास में, प्रथम महोत्सव-माघ । करवायो कालूगणी, बढ्यो क्षेत्र रो आघ।। २. कुंदनमलजी सेठिया, गभीर हीराचंद । ___ भंवर-देवड़ा' आदि सह, श्रावक मिल्या अमंद ।। ३. करी व्यवस्था सांतरी, साज-बाज शुभ साझ। बगड़ी अति तगड़ी हुई, सारो खिल्यो समाज ।। ४. एक दिवस इण शहर में, श्री भिक्षु गणनाथ। विकट-विकट संकट सह्या, सुमरत दिल दहलात।। ५. आ'र न मिल्यो अरोगणे, रहणै मिल्यो न ठाण। जैतसिंह की छतरियां, जाकर जम्या मसाण।। ६. आलीशान इमारतां, हाजर आज अनेक। खातिरदारी यात्रियां, टीनालय-अतिरेक ।। १. लय : डालगणी रै पाट विराज्या भान ज्यूं २. शिकार और शराब ३. गम्भीरचंदजी धारीवाल ४. हीराचंदजी कातरेला ५. भंवरलालजी देवड़ा ६. बगड़ी के प्रायः परिवार व्यवसाय की दृष्टि से बाहर रहते थे। वहां महोत्सव होने से तेरापंथ समाज के पिचहत्तर घर एक साथ खुल गए। इससे समाज खिला-खिला-सा प्रतीत होने लगा। ७. टीन से बनी हुई अस्थायी कोठरियां उ.४, ढा.८,६/६७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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