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३०. ओ विरतंत संतपति सारो, श्रवण सुण्यो चित शांते।
पूरण जांच करण तीनां नै, तेझ्या अब एकांते।। ३१. चुंबक रूप भूप शासण रो, पूछी चर्या सारी।
स्खलित-वचन हलफलित वदन लख, झट दुर्नीति निहारी।। ३२. श्रमण-समूह सैकड़ां श्रावक समुदित समय सवारे।
सम्मुख ऊभा राख सुगुरु, अब तीनां नै फटकारे।। ३३. दगादार है गुनहगार है, कर-कर फाड़ातोड़ी।
गण में भेद डालणो चावै, तीनां री इक जोड़ी।। ३४. लख अजोग संभोग साथ तीनां रो तृण ज्यूं तोडूं।
आं धूतारां स्यूं इण क्षण, मैं च्यार तीरथ मन मोडूं।। ३५. भैक्षव-गण री गजब छटा आ, एक पूज्य हुंकारे।
एक साथ सब गूंज उठे, ज्यूं सुरघंटा इक लारें'।। ३६. नयन-नीर अरु वचन-वीरता, अंग अधीरजताई।
जाता-जातां आ ढकोसळा-वृत्ती खूब दिखाई।। ३७. सकल संघ में अंग-अंग में, नूतन जागृति आई।
जो होणे को हुयो काम, बाजी गुरु-जस-सहनाई।। ३८. श्री श्री कालूयशोविलासे, तूर्योल्लासे गाई।
दूजी ढाळ रसाळ, चाल 'छल्ला' की सब मन भाई।।
ढाळः ३.
दोहा १. मास वास कर लाडनूं, गढ़-सुजान गुरुराज। ___ एकादश दिवसां सुधी, पावन कीन्हो प्राज।। २. उगणीसै निब्बै समै, शोभन फाल्गुन मास।
कृष्ण सप्तमी शुभ तिथी, उदिता विमल विकास।।
१. स्वर्ग में शक्रेन्द्र की आज्ञा से सौधर्मावतंसक विमान की एक सुघोषा घंटा बजती है,
उस समय उसके साथ बत्तीस लाख घंटाएं बजती हैं।
उ.४, ढा.२,३ / ७५