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________________ ३७. कामकलश तकदीर-विहूणो, पाकर मोद मनावै रे। सद्य मद्य-मतवालो बालो, सिर धर नाच नचावै रे।। ३८. युत मिष्टान पान पायस रो, श्वा-उदरे न समावै रे। मधुधूली पयघूली क्यूंकर, गर्दभ-पेट पचावै रे? ३६. टाळोकर रो किसब तात-सुत, लोक-बोक बहकावै रे। प्रथम ढाळ चौथे उल्लासे, 'तुलसी' थिरता ल्यावै रे।। ढाळ २. दोहा १. मिगसर मास महामना, छापर ताल पधार। श्रमण सती समुदित उदित, करी सारणा सार।। २. बहुश्रुती वर हेम मुनि, गुरु-इंगित-गतिमान। डायमल्ल मुनि पे ग्रह्यो, गहन जिनागम-ज्ञान।। ३. गहरी गुरु-गम-धारणा, दीर्घ-दृष्टि-संपन्न। ___ हेम हेम की प्रतिकृति, प्रतिवादी प्रच्छन्न।। ४. मुझनै संप्रेरित कर्यो, एक नई ‘दी मोड़। उपन्यास-माधुर्य स्यूं, दीन्हो तत्त्व-निचोड़ ।। ५. अभिनव सूत्राभ्यास की, शैली मिली सुप्यार। कालू-कृपया हेम रो, म्हारै सिर आभार।। ६. पूस-नखत बदखत स्यूं, तज शासन-विश्वास। विकल-रूप विद्रूप बण, बहुत कियो बकवास ।। ७. सन्निपात-आघात में, परवशता रो खेल। टाळोकर रो हृदय त्यूं, पल-पल मोह-दबेल ।। ८. सौ अवगुण मुख स्यूं गणो, बणो जु कुक्कड़धम्म । पिण भैक्षवगण रो ऋणो, रहसी शिर हरदम्म।। १. देखें प. १ सं. ४ २. देखें प. १ सं. ५ ३. पूसराज नामक मुनि, जिनका गोत्र नखत था। ४. देखें प. १ सं. ६ ७२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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