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प्रस्तुति
परम उपास्य परम उपकारी, मानव संस्कृति रा आधार। भैक्षवगण अष्टम अधिशास्ता, युग-विकास रा सरजणहार। श्री कालू जीवन-दर्शण री, आ अनन्य अनुभूत कृति। प्रस्तुत है श्री संघ सामने, सादर सविनय सप्रणति।।
दो हजार संवत री रचना, नव संपादन रो प्रारंभ। बत्तीसै जयपुर-पावस में, सश्रम काम चल्यो अविलंब । तेतीसै सरदारशहर में, श्रावण बिद सातम संपन्न। ई दर्पण में प्रतिबिम्बित, भावी अतीत अरु प्रत्युत्पन्न।।
तुलसी-विरचित कनकप्रभा-संपादित कालूयशोविलास। मूर्तिमान संघीय भावना, आत्म-साधना रो विश्वास। चातुर्वर्णी श्रमण-संघ, स्वीकार करो अभिनव उपहार। पढ़ो बढ़ो नित प्रगति पंथ पर, सुमर-सुमर सद्गुरु-उपकार।।
आचार्य तुलसी