________________
प्रबुद्ध पाठकों की उक्त अपेक्षा आचार्यश्री महाप्रज्ञ के सम्मुख रखी गई तो आचार्यश्री ने भी स्वीकार किया कि कुछ पद्यों का हिन्दी अनुवाद आवश्यक है। स्वयं आचार्यश्री ने विशेष अनुग्रह कर उनका अनुवाद लिखवा दिया।
पुस्तक प्रेस में गई और कम्पोज होकर आ गई। पृष्ठ संख्या में वृद्धि स्वाभाविक थी। एक विशालकाय ग्रन्थ को हाथ में लेकर पढ़ना और विशेष रूप से प्रवचन में उसका उपयोग करना. दुरूह-सा लगा। समस्या आचार्यश्री को निवेदित की गई। आपने निर्देश दिया कि ग्रन्थ को दो खण्डों में सम्पादित कर दिया जाए। समाधान की दिशा खुल गई।
आचार्यवर के निर्देशानुसार प्रथम तीन उल्लास और उनसे सम्बन्धित परिशिष्ट एक खण्ड में संयोजित कर दिए गए। शेष तीन उल्लास तथा पांच शिखाएं
और उनसे संबद्ध परिशिष्ट दूसरे खण्ड में समायोजित हो गए। एक ग्रन्थ को दो खण्डों में विभक्त कर देने से कुछ नया जोड़ने का अवकाश हो गया। फलतः संक्षिप्त उल्लास-परिचय को पूरे विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है तथा प्रथम परिशिष्ट (सांकेतिक घटनाएं) का अनुक्रम भी जोड़ दिया गया।
कालूयशोविलास में कुल एक सौ एक गीत हैं तथा कुछ अन्तर्गीत हैं। कई गीतों की रागें अनेक बार काम में ली गई हैं, इस दृष्टि से नए गीतों की संख्या कुछ कम हो सकती हैं। जितने गीत ग्रन्थ में प्रयुक्त हुए हैं, उनकी मूल रागिनियों का एक पद या पदांश गीत के नीचे दिया गया है। इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले कुछ व्यक्तियों से सुझाव मिला कि इन रागिनियों के एक-एक पद्य संकलित कर दिए जाएं तो एक महत्त्वपूर्ण काम हो सकता है। आज पुरानी रागों को जानने वाले एवं गाने वाले गायक बहुत कम हैं। भविष्य में उनकी संख्या में वृद्धि की संभावना तो है ही नहीं, यह संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है। ऐसी स्थिति में मूल गीतों के एक-एक पद्य भी सुरक्षित रहेंगे तो कभी ऐसा युग आ सकता है, जब इस दिशा में नई चेतना का जागरण हो जाए।
सुझाव अच्छा था, पर काम श्रमसाध्य ही नहीं, असाध्य-सा प्रतीत हुआ। शासनगौरव मुनिश्री मधुकरजी पहले से ही इस कार्य में संलग्न थे। उन्हें आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में पुरानी रागिनियों को सीखने व गाने के अवसर मिलते रहे। इस विषय में आचार्यश्री भी उनके प्रति पूरे विश्वस्त थे। मुनिश्री मधुकरजी के सहयोग से यह कार्य सुगमता से हो सकता है, इस विश्वास के साथ उन्हें निवेदन किया कि वे अपने कार्य को शीघ्र पूरा कर सकें तो कालूयशोविलास के नए संस्करण में एक परिशिष्ट बढ़ा दें। मुनिश्री मधुकरजी ने अपनी ओर से पूरा प्रयत्न किया, फिर भी कुछ गीतों के पद्य उपलब्ध नहीं हो पाए। अनुपलब्ध की
६० / कालूयशोविलास-२