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________________ कालूयशोविलास का निर्माण होने के बाद आचार्यश्री ने परिषद में इसका वाचन किया। इसी प्रकार सम्पादन के बाद भी प्रवचन के समय कालूयशोविलास का वाचन हुआ। श्रोता मुग्ध हो गए और इसका स्वाध्याय करने के लिए उतावले हो उठे। ग्रन्थ प्रकाशित होकर आया। प्रथम संस्करण को पाठकों ने सिर-आंखों पर उठा लिया। काव्यशैली में लिखे गए कालूयशोविलास को ग्रन्थ के स्थान पर महाग्रन्थ कहना अधिक उपयुक्त रहेगा। इसका प्रथम संस्करण बहुत जल्दी पाठकों के हाथों में चला गया। कुछ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद द्वितीय संस्करण छपकर आया। प्रतीक्षारत पाठकों को अपनी मनपसंद काव्यकृति उपलब्ध हो गई। कालूयशोविलास का भाषाशास्त्रीय अध्ययन जितना आवश्यक है, इसकी रागिनियों का अवबोध और अभ्यास उससे भी अधिक जरूरी है। इस अपेक्षा को ध्यान में रखकर स्वयं आचार्यश्री ने अनेक बार साधु-साध्वियों को कालूयशोविलास की रागिनियों का प्रशिक्षण दिया, उनका अभ्यास कराया। राजस्थानी भाषा में अनुसन्धान करने वाले कुछ छात्रों ने कालूयशोविलास को शोध का विषय बनाया। संभवतः एक-दो छात्रों ने उस पर डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त कर ली होगी। किन्तु कालूयशोविलास पर अनुसन्धान की कोई इयत्ता नहीं है। इस एक ही ग्रन्थ पर पचासों व्यक्ति भिन्न-भिन्न दृष्टि से काम कर सकते हैं। कुछ वर्ष पहले राजस्थानी भाषा के विशिष्ट विद्वान डॉ. देव कोठारी ने, जो अभी-अभी राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष मनोनीत हुए हैं, एक शोधार्थी को कालूयशोविलास पर काम करने की प्रेरणा दी। शोधार्थी को बुकस्टॉल पर पुस्तक नहीं मिली। भाई देवजी ने किसी अन्य स्रोत से पुस्तक उपलब्ध कर शोधार्थी की समस्या को समाहित कर दिया। पर उन्होंने एक ऐसा प्रश्नचिह्न छोड़ दिया, जो ग्रन्थ के प्रकाशक या सम्पादक के लिए चुनौतीपूर्ण था। आदर्श साहित्य संघ के बुकस्टॉल पर पिछले बहुत वर्षों से कालूयशोविलास की पुस्तक नहीं थी। पुनर्मुद्रण की अपेक्षा स्पष्ट रूप में परिलक्षित हुई। प्रस्तुत सन्दर्भ में एक चिन्तन आया कि इसके छहों उल्लासों के प्रारंभ में 'मंगलवचन' रूप में कुछ दोहे हैं, वे बहुत क्लिष्ट हैं। उनका हिन्दी अनुवाद अपेक्षित है। इसी प्रकार चतुर्थ उल्लास की दसवीं ढाल के कुछ पद्य डिंगल कविता के रूप में हैं। उन्हें समझना तो और भी कठिन है। उनका भी हिन्दी रूपान्तरण हो जाए तो सुविधा रहेगी। कालूयशोविलास-२ / ५६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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