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________________ १/४ १/५ १/६ 9/0 १/८ १/८ 9/€ अन्तर ढाळ मतिमन्त मुणी ! सुकुलीणी श्रमणी ! गुरु-शिक्षा धारिये । पश्चिम रयणी, ऊठ-ऊठ अक्षर-अक्षर संभारिये ।। ध्रुव. मुनि पंच महाव्रत आदरिया, तजि धण कण कंचन परिवरिया । मनु कंचन गिरिवर कर धरिया ।। मतिमन्त मुणी ! मूक म्हांरो केड़लो मैं ऊभी छू हजूर रे । डाभर नैणी रे । ध्रुव. कोरो कळसो जल भरयो कांइ धरती शोष्यां जाय । बालु रे दिक्खण री चाकरी म्हांरो पिउ तिरसायो जाय ।। पुण्यसार सुख भोगवै रे, आठ नारी संघात । कमी नहीं कोई बात नीरे, हर्ष मांही दिन जात। दुख गयो विलाई रे ।। देखो पुण्यसार नीं प्रबल पुन्याई सहु मन भाई रे । भाई भाई भाई रे या लोक सराई रे । देखो... राजिमती इम विनवै हो मुनिवर ! मन चलियो तूं घेर, थोड़ा सुखां रे कारणे हो मुनि ! क्यूं हारे नर भव फेर हो । सुण-सुण साधजी हो मुनिवर ! पांच महाव्रत आदरया हो मुनिवर ! मेरू जितरो भार । मिया बांछा करो हो मुनिवर ! लीधो संजम भार ।। क सुण-सुण.... अन्तर ढाळ गहरी जी ! फूल गुलाब रो... सात सहेल्यां रै झूलरै, म्हारी गवरल गइ रे तळाव, राठोड़ ! गहरी जी फूल गुलाब रो । और सहेल्यां पाछी बावड़ी, म्हारी गवरळ रही रे तळाव, राठोड ! गहरी जी फूल गुलाब रो विनय ! निभालय निजभवनम् । तनु-धन-सुत-सदन-स्वजनादिषु किं निजमिह कुगतेरवनम् । विनय ! निभालय निजभवनम् ।।ध्रुव ।। ३७६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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