SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत रखना।' गुरुदेव की शिक्षा को उसने इतनी गंभीरता से स्वीकार किया कि अपने जीवन को तदनुरूप ढाल लिया। सेवा में रहने वाले अन्य कासीदों के लिए यह एक अनुकरणीय बात है । १२८. मुनि पृथ्वीराजजी आचार्यों के कृपापात्र मुनि थे। जिस समय डालगणी का स्वर्गवास हुआ, उनका चातुर्मास देवगढ़ था। वहां एक भाई दीक्षा लेना चाहता था। उसके लिए देवरिया - निवासी जवाहरमलजी बोरदिया ने कालूगणी के दर्शन कर निवेदन किया- 'कस्तूरचंदजी आछा दीक्षा लेने वाले हैं। आप कृपा कर मुनि श्री पृथ्वीराजजी को चातुर्मास के बाद उधर रहने का आदेश दिलाएं।' कालूगणी ने फरमाया- 'चातुर्मास के बाद कुछ दिन आसपास के गांवों में रहकर देवगढ़ में दीक्षा दे देंगे, फिर इधर आ जाएंगे।' बोरदियाजी ने वहां जाकर दीक्षा देने की बात कह दी, पर विहार की बात कहना भूल गए। मुनि पृथ्वीराजजी चातुर्मास के बाद दीक्षा के कल्प में देवगढ़ ही रह गए। जब उन्होंने कालूगणी के दर्शन किए तो उन्हें पूछा गया - 'चातुर्मास के बाद आपने विहार क्यों नहीं किया?' मुनि पृथ्वीराजजी विनम्रता से बोले - 'गुरुदेव दीक्षा का आदेश था, इसलिए मैं वहीं रह गया ।' कालूगणी ने फरमाया-' आपको दीक्षा के साथ अन्यत्र विहार का भी आदेश था। आपने एक बात पकड़ ली और दूसरे निर्देश के प्रति लापरवाही बरती है । अपने धर्मसंघ में अनुशासनहीनता की छोटी बात भी नहीं चलनी चाहिए।' कालूगणी की दृष्टि में मुनि पृथ्वीराजजी द्वारा आदेश- पालन में उपेक्षा रही, इसलिए उनके प्रति दृष्टि में थोड़ा अंतर आ गया । आखिर बोरदियाजी आए और उन्होंने स्थिति को स्पष्ट करते हुए अपनी भूल स्वीकार की तथा निवेदन किया- 'मुनिश्री की कोई गलती नहीं है। आपका आदेश इन तक पहुंचाने में असावधानी मेरी ओर से हुई है ।' कालूगणी ने इस लापरवाही के लिए उनको उपालंभ दिया। बोरदियाजी ने अनुनय-विनयपूर्वक अपनी गलती के लिए क्षमायाचना की । कालूगणी ने उनके अनुरोध पर ध्यान दिया और मुनि पृथ्वीराजजी का भी सही मूल्यांकन किया । १२६. मंत्री मुनिश्री मगनलालजी तेरापंथ संघ के स्तंभ थे। मघवागणी ने वि. सं. १६४६ में आपका स्हाज बना दिया। कालूगणी के समय गुरुकुलवास में दो ही स्हाज थे - एक मंत्री मुनि का और दूसरा मुनि शिवराजजी का। मुनि शिवराजगो के स्हाज में चार संत थे। बाकी सब संत मंत्री मुनि के स्हाज में थे। मंत्री मुनि का कार्यक्षेत्र व्यापक था, इसलिए वे अपने स्हाज की व्यवस्था में भाग कम लेते थे । इसका परिणाम यह आया कि स्हाज में अव्यवस्था होने लगी, संतों ३४६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy