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वे अपनी बात पर अड़ी रहीं। आखिर साध्वी अणचांजी को वहां भेजा गया। उन्होंने जाते ही साध्वी प्यारांजी को विहार के लिए राजी कर लिया। ऐसी और भी अनेक घटनाएं हैं, जिनसे साध्वीश्री अणचांजी की विशेषताओं का अंकन किया जा सकता है। उनके संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित दोहा
अणचां! तें आछी करी, करणी शिव-सुख-काम।
मदो न दीखै मांस रो, थारै चलकै कोरी चाम।। ११४. आचार्यश्री कालूगणी कुशल व्याख्याता थे। वे अपने प्रतिपाद्य को घटनाओं और उदाहरणों को माध्यम से इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देते थे कि श्रोताओं के अन्तश्चक्षु उद्घाटित हो जाते। ब्रह्मचर्य के संबंध में वीर्यरक्षा की दृष्टि से वे एक उदाहरण देते थे, जो इस प्रकार है
एक व्यक्ति के पास तीन घड़े हैं-एक अखण्ड, एक ग्रीवा से फूटा हुआ तथा एक नीचे पैंदे से फूटा हुआ। वह तीनों को घी से भरता है। अखण्ड घड़ा ऊपर तक घी को धारण कर लेता है। उससे अधिक जो घी डाला जाता है, वह उसमें समाता नहीं है। ग्रीवा से फूटे हुए घड़े में ग्रीवा तक घी सुरक्षित रहता है उससे ऊपर का निकल जाता है। जो घड़ा नीचे से फूटा हुआ है, उसमें घी को धारण करने की क्षमता नहीं है। इसलिए जितना घी डाला जाता है, सारा का सारा निकल जाता है। ____ यह एक रूपक है। इसके द्वारा रूपायित है तीन प्रकार के व्यक्तियों की योग्यता। प्रथम अखण्ड घड़े की तुलना ब्रह्मचारी साधकों से की गई है। उनके शरीर में सातों धातुओं का उत्पादन और उपयोग उचित मात्रा में होता है। इस लिए उनका शरीररूपी घट भरा रहता है। कदाचित उत्पादन में मात्रा का अतिक्रमण होता है तो वीर्य की जो अतिरिक्त मात्रा होती है, उसका दुःस्वप्न आदि कारणों से क्षरण हो जाता है। इससे साधक का कोई खास नुकसान नहीं होता।
दूसरे वर्ग में वे गृहस्थ आते हैं, जो स्वदार संतोषी होते हैं। वे ग्रीवा से फूटे हुए घड़े के समान हैं। ऐसे घड़े में ग्रीवा तक घी सुरक्षित रहता है, उससे ऊपर का निकल जाता है। सीमित संभोग से जो वीर्य-क्षरण होता है, उसके कारण शरीर ऊर्जा से रिक्त नहीं होता। उसकी अधिक ऊर्जा सुरक्षित रहती है और थोड़ा नुकसान होता है। इस मध्यम मार्ग का आलंबन लेकर सामान्य गृहस्थ समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नैतिक सीमा में आ जाते हैं।
तीसरे वर्ग में वे व्यक्ति आते हैं, जो प्रकृति-विरुद्ध आचरण करते हैं। अप्राकृतिक संभोग और व्यभिचार दुराचार की कोटि में गिने जाते हैं। ऐसे व्यक्ति
३३६ / कालूयशोविलास-२