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५८. मूढ़े आवै खावतां थोड़े में पकवान।
सदा दाळ-रोटी रुचै त्यूं गुरु-गुण-व्याख्यान ।। ५६. हृदय-हूंस पूरी हुई सफल आश सामोद।
कालूयशोविलास ओ धरूं संघ री गोद ।। ६०. पवन-रूप पावनमना सज्जन जन निर्द्वन्द।
जन-जन में फैलावसी ग्रंथ-कुसुम री गंध ।। ६१. म्हारै रचना-कार्य में यदि अज्ञान प्रमाद। _ 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' मैं बोलूं साहाद।। ६२. दो हजार शुभ संवति भाद्रव सुध पख छट्ठ।
सूर्यवार सागी समय गुरु गहि परभव-वट्ट ।। ६३. गंगाशहर सुहावणो गंगापुर रै स्थान।
सारी स्मृतियां ऊभरी अभिनव अनुसंधान।। ६४. श्रावक ईशरचंदजी सिज्यातर शालीन।
जाणक सारो चोखळो सेठ-हुकम-आधीन।। ६५. श्रद्धालू संपन्नता वर्धमान परिवार।
गंगाशर रा चोपड़ा कालू गुरु-उपकार।। ६६. क्षेत्र सुरंगो है घणो अति धार्मिक उत्साह।
तीन खेत्र दो मील में झांकै गुरु-दृग-राह ।। ६७. एगुणचाली संत हैं, सती पांच पच्चास।
झमकू लाडां आदि दे सेवै सुगुरु-सुवास ।। ६८. भैक्षवगण में भलकता श्रमण एक सौ साठ।
श्रमणी तेरह च्यार सौ जग-जस बाट हि बाट।। ६६. शिखा पांचमी में हुयो पूरो उपसंहार।
कालूयशोविलास ओ शासण रो सिणगार।।
उपजाति-वृत्तम् १. शिक्षा तितिक्षां प्रथयन् समाजे,
गायन् गुरोर्गौरव-गीत-गाथाम्। समुज्ज्वलं नीतिबलं वितन्वन,
कुर्वन्ननीतेः क्षयमेवमेकम्।। २. प्रदर्शयन् मोक्षपथं मुमुक्षु,
संस्पर्शयन् धर्मधुरीणधैर्यम् ।
शिखा-५ / २५३