________________
७. मो मन में नेहचो निविड़, सुत-कर में सुरवास ।
मुझ कर में सुत संचर्यो, ओ विचित्र विधि-भास।। ८. अति लम्बो आयुष्य ओ, म्हारो बण्यो निकाम।
निठुर हृदय निरखै नयन, नन्दन-विरहो वाम।। ६. जो सपनै जाणी नहीं, सो दरसाणी आज।
कोई पण मत बांधज्यो, भावी रो अंदाज।। १०. गुरु-जणणी अतिविरहणी, सर्वंसहणी रूप।
समझावै चेतन भणी, अपणो आत्म सरूप।।
"मन मजबूत कियो माताजी। तो जीती जीवन री बाजी।।
११. रे रे चेतन! क्यूं घबरावै कल्पित सारा झै सुख-दुख है।
है संयोग वियोग-विधायक ओ जिनमत रो तत्त्व प्रमुख है।। १२. इष्ट-वियोग अनिष्ट-सुयोगे कायर नर झुर-झुर मुरझावै।
निज अधिकार विसार व्यथाकुल व्याकुलता दिल री दरसावै।। १३. तज संयोग वियोग रोग-युग जो नर अजर-अमरता पावै।
सहजानंद समंदर अंदर बो अपणत्व ममत्व मिटावै।। १४. यद्यपि मुझ कुलदीपक कालू कुक्षि-उजारण तारणहारो।
त्रिभुवन-ताज नाज शासण रो लाखां नर-नयणां रो तारो।। १५. मैं ही क्यूं सारो गण विरही फिर आ कायरता कमजोरी।
खटै नहीं संयम-जीवन में आखिर जो है बात निजोरी।। १६. मैं नरसिंह-सुता अरु माता इक संतानवती कहलाई।
___ आज अहो! मुझ लाज घणेरी जो दिल कायरताई आई।। १७. दृढ़ दृढ़तम हिरदो कर लीन्हो प्रबल मनोबल छोगां माई।
बाणू बरसां री ईं वय में पाई ज्यूं नूतन तरुणाई।।
१. लय : गुरांजी थे मनै गोडै न राख्यो २. मातुश्री छोगांजी के संसारपक्षीय पिता का नाम नरसिंहदासजी था। इस दृष्टि से आप
नरसिंह-सुता थीं। आपके सुपुत्र कालूगणी मनुष्यों में सिंह के समान थे, अतः आप नर-सिंह-माता थीं। -
२२८ / कालूयशोविलास-२