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________________ ११. भणै श्रमणगण श्रमणाधिप स्यूं नाजुक है स्थिति आज, लग्यो बदलणे रंग अंग रो गौर करो गुरुराज! म्हारा दिल दहलावै रे।। १२. पुरुषार्थी शिरशेखर गुरुवर बोलै वचन विचार, आज विभावरि काल छमछरी त्याग्या च्या आ'र। सहज्यां ही समभावै रे।। १३. ईं बिच में आऊखो आवै तो है जावज्जीव, च्यारूं आ'र त्याग सागारी अनशन हर्ष अतीव । दृढ़ परिणामां ठावै रे।। १४. इण अतिशय अस्वस्थ अंग में अनशन स्यूं अति प्रेम, जिनदर्शन में अनशन मोटो पावै जो दृढ़नेम। कुल नै कलश चढ़ावै रे।। १५. पांचम दिन उपवास पूज्य रै त्यूं ही सारै संघ, __महापर्व पर्दूषण भूषण राचै अभिनव रंग। कायर खाणो खावै रे।। १६. सांवत्सर प्रवचन कर आयो मैं गुरु-पद-उपपात, श्रान्त क्लांत जोड़ी पर पोठ्या नहिं पूछण री बात। बैठ्या संत सिदावै रे।। १७. सारै दिन सरखी बेचैनी अति पैनी जल प्यास, समता-भावे सुख फरमावे मंद श्वास-निश्वास। दुर्बलता रै दावै रे।। १८. रात पाछली नाथ गात में थोड़ी ठंडक व्याप्त, पार्श्वस्थित सन्तां रै स्हामै प्रकट वचन पर्याप्त। श्रीमुख स्यूं फरमावै रे।। १६. काल दिवस तो दिन भर निशि भर विवश कियो विश्राम, उणनै' पिण सुख-प्रश्न न पूछ्यो हूंतो घाम प्रकाम। वत्सलता दिखलावै रे।। २०. अब बोलावो बार म ल्यावो, मैं तब प्रणमूं पाय, कर धर मस्तक गुरुवर पूछे, तृषा न व्यापी काय? प्रवचन-कष्ट-प्रभावै रे।। १. युवाचार्य श्री तुलसी को उ.६,ढा.१२ / २१३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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