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२. इग्यारस वैशाख बिद, पूज्य करै प्रस्थान।
दो दिन ही बस 'किशन-गढ़', कियो मधुर व्याख्यान।। ३. मही नदी पुनरपि लही, लांघ 'डाबड़ी' ग्राम। ___'लाल गुवाड़ि' 'करेणि' हो, राज्या बलि रतलाम' । ४. चाल्या जद 'रतलाम' स्यूं, आज पुनः ‘रतलाम' ।
गाऊ शत इक्कीस रो, चक्कर लग्यो ललाम।। ५. महाभाग गुरु भेटिया, पुर रतलाम-दिवान।
कौंसिल रा मेम्बर कई, पाया हर्ष महान।।
अब मेवाड़ री धरती की ओर शुभ प्रस्थान है। जैन साधुवां रो चलतो-फिरतो ही संस्थान है।।
६. च्यार मास आसरै विराज्या मालव देश में।
पुर-पुर ग्राम-ग्राम संघ की बढ़ाई शान है।। ७. भावभीनी प्रार्थना पावस की पूरै प्रांत री।
लागै बण्यो-बणायो पहलां स्यूं ही सारो प्लान है।। ८. जैन-दर्शन में सदा पुरुषार्थ री परधानता।
लो पिण निश्चय में नियती रो एक अपणो स्थान है।। ६. इण ही कारण व्यार काळे उन्हाढ करणो पड़े।
यद्यपि थळियां स्यूं ओछो सूरज रो तापमान है।। १०. मालवै रा मांझी लोक खड्या है उदास-सा।
क्यूं कर अपणे मुंह स्यूं गाईजै विदाई गान है।। ११. आंसूड़ां री ओट में सचोट छुपी भावना।
भारी भार स्यूं अणबोल जण-जण री जबान है।। १२. काल आया आज जावो जादू को-सो खेल ओ।
मानो इन्द्रजाळ सपने को-सो तानबान है।। १३. ठार को-सो तेहड़ो है संतां रो सनेहड़ो। ___बात सुणता तो सदा ही आज हुयो भान है।।
१. लय : रोको काया री चंचलता नै
१५६ / कालूयशोविलास-२