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________________ 'आदर्श साहित्य संघ' ने इसका अधिग्रहण कर लिया। इसके बावजूद परिवर्तन का सिलसिला पूरा नहीं हुआ। क्योंकि उसके बाद साधु-साध्वियों की अंतरंग परिषद में समालोचनात्मक दृष्टि से 'कालूयशोविलास' का पारायण किया। उस समय तक भी परिवर्तन की नई संभावनाओं के द्वार मैंने बंद नहीं किए, फलतः निर्णायक स्थिति तक पहुंचते-पहुंचते एक साल से अधिक समय लग गया। परिष्कार के बाद इसका जो रूप बना, वह मेरे लिए आहाददायक है। इसके कुछ गीत प्राचीन गीतों की रागिनियों में आबद्ध हैं, अतः नए साधु-साध्वियों के लिए थोड़ी कठिनाई हो सकती है। फिर भी पूज्य गुरुदेव का यह जीवन-वृत्त हमारे धर्मसंघ को नित नया शिक्षा-संबल दे सकेगा, ऐसा विश्वास है। कालू-जन्म-शताब्दी' के पुण्य प्रसंग पर कालूगणी को समग्रता से जानने-समझने की भावना स्वाभाविक है। अपने अंतस्तोष के लिए किया गया मेरा यह सजन जन-जन की जिज्ञासा का स्वल्प-सा भी समाधान बना तो मुझे अतिरिक्त आह्लाद की अनुभूति होती रहेगी। गोठी-भवन आचार्य तुलसी सरदारशहर ३० अगस्त, १६७६ कालूयशोविलास-२ / ११
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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