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पंचम उल्लास
शिखरिणी-वृत्तम्
मुखाम्भोजे यस्य स्फुरितमतिमात्रं सुषमया, गुणोघैर्हंसोघैरिव च रचितं खेलनमलम् । शुभस्तोमैर्भृङ्गैरिव सविधि विभ्रान्तमनिशं, गणाधीशं कालुं तमहमभिसेवे प्रतिपलम् ।।
जिनके मुख कमल पर अतिशय सुषमा परिस्फुरित होती थी, गुण- गण रूप हंस-समूह सदा जिनके निकट क्रीड़ा करता था, पुण्य-पुंज रूप भ्रमर जिनके आसपास मंडराते रहते थे, उन शासनेश श्री कालूगणी की मैं सतत पर्युपासना करता हूं ।
१२४ / कालूयशोविलास-२