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________________ दिया। संघ-विकास की मूल नींव को अधिक ठोस बनाते हुए उन्होंने जो नए परिवर्तन किए, उनसे संघ के व्यक्तित्व में नया निखार आता रहा। जन-जन के अंतःकरण में धर्म की पावन गंगा प्रवाहित करते हुए वे चातुर्मासिक प्रवासे के लिए गंगापुर पहुंचे। विगत कुछ समय से समुद्भूत तर्जनी अंगुली की पीड़ा बढ़ती जा रही थी। समुचित साधन-सामग्री के अभाव में वह कण-सी फुसी असाध्य होती गई। उस असाध्यता ने गुरुदेव के आयुष्य कर्म की उदीरणा कर दी, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उस समय इस दृष्टि से विशेष ध्यान ही नहीं दिया गया, अन्यथा गुरुदेव को बचाना संभव भी था। पर हमारे अपने ही प्रमाद ने हमें गुरुदेव की दीर्घकालिक सुखद सन्निधि से वंचित कर दिया। कालूगणी के जीवन का सांध्यकाल मेरे लिए दोहरी दुविधा का समय था। एक ओर गुरुदेव के असह्य वियोग की संभावना, दूसरी ओर अपने कर्तव्य की प्रेरणा। एक ओर मेरे मुनि जीवन के पीछे छूटे हुए ग्यारह वर्ष आंखों के सागर में तैर रहे थे तो दूसरी ओर अनागत की अनिश्चित अवधि उस सागर में तरंगित हो रही थी। एक ओर बाईस वर्ष का युवक, दूसरी ओर एक विशाल धर्मसंघ का गुरुतर दायित्व। मैंने अनुभव किया कि कालूगणी का हृदय वज्र जैसे सुदृढ़ परमाणुओं से निर्मित था, अन्यथा वे एक युवा चेतना पर इतना भरोसा नहीं कर सकते। कालूगणी ने मुझे संघ की जिम्मेवारी के साथ उसे निभा सकने का संबल देकर मृत्यु का आलिंगन कर लिया। सहस्रों-सहनों दीप-शिखाओं से समालोकित आचार्यश्री कालूगणी के जीवन को मैंने बहुत निकटता से देखा था। मुझे सहज प्रेरणा मिली कि मैं उस विलक्षण व्यक्तित्व को साहित्यिक परिवेश देकर अपने जीवन के कुछ क्षणों को सार्थक बनाऊं। मैं शीघ्र ही अपनी लेखनी को सफल करना चाहता था, पर मुनिश्री मगनलालजी स्वामी ने सुझाव दिया-'आपका काम आपको ही करना है। किंतु इसमें जल्दी करना ठीक नहीं रहेगा। अभी आपको कुछ समय अन्य आवश्यक कार्यों में लगाना चाहिए।' मैंने उनके सुझाव को आदर दिया और कुछ वर्षों तक अन्य कार्यों में संलग्न रहा। वि. सं. १६६६, फाल्गुन शुक्ला तृतीया को मोमासर (चूरू) में मैंने 'कालूयशोविलास' का निर्माण कार्य प्रारंभ किया और वि. सं. २००० भाद्रव शुक्ला षष्ठी, गंगाशहर में संध्या के समय इसे संपन्न किया। लगभग चार साल के इस समय में 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' के अनुसार विघ्न भी उपस्थित हुए। शारीरिक अस्वास्थ्य के कारण साल-डेढ़ साल तक रचना-कार्य स्थगित रहा। इन सबके कालूयशोविलास-२ /६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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