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१३. 'आगरियै' स्यूं आविया, गुरुवर ‘गढ़ सरदार' हो। ___'जेतपुरै' पथ 'केलवै', भिक्षूनगर निहार हो।। १४. 'मोखमपुर' हो महामुनि, 'राजनगर' अनुकूल हो।
‘कांकरोलि' करुणा करी, शांत-सुधारस झूल हो।।
दोहा
१५. 'धोइन्दै' पदरज धरी, नाथ 'नमाणे' गाम।
दरस दिया 'कोठारियै', जन-आशा-विश्राम।। १६. 'नाथद्वारै' दो दिवस, अब 'गोगुन्दै' माग।
जेठ मास है पख शुकल, यौवनवती निदाघ। १७. ठंडक जाणी पथ लियो, 'सेळा' रो गण-इंद। __'परवाल' 'मोलेरा' प्रगट, 'काराई' रु 'मचींद' ।। १८. 'कठार' 'बरवाड़ा' बही, मन्द-मन्द गति साज।
समवसऱ्या समभाव स्यूं, 'रावळिया' में राज।। १६. 'बाटी री घाटी' बड़ी, 'भूताळा रो घाट।'
टार्यो परबारो गुरु, तो पिण विषमी बाट ।। २०. भटभेड़ा छेहड़ां बिना, पग-पग चाढ़-उतार ।
इण अणमाप्यै पंथ रो, नीठ हि हुवै निकार।।
'जी काइ जनमभूमि मुनि मगन री गुरु आया 'मोटैगाम' ।
२१. 'रावलियां' ऋषिराय रो काइ, जनमधाम पहचाण।
दोय दिवस वासो बसी कियो 'मोटैगाम' मंडाण।। २२. मांजरियां हरिया-भऱ्या कांइ, सोहै द्रुम सहकार।
कोयलियां खिलियां करै काइ, कुहुक-कुहुक टुहकार ।। २३. आम्र-मिठास चिठास री भरै, सौरभ सहज सुसाख।
दरखत छाया निरखता हुवै, पथिक शयन अभिलाख।। २४. मधुकर-गुंजारव मिषे कांइ, लहि मधु रो आस्वाद।
नहिं-नहिं कहिं इसड़ो मधू, करै पथिकां स्यूं संवाद ।।
१. लय : वीरमती तरु अम्ब नै कांइ दीधो कम्ब-प्रहार
उ.४, ढा.११ / १०७