________________
१०. सहज सरल श्रद्धालू, है हृदयालू धर्माभ्यासी रे।
बहु परिवार अपार धान्य-धन, मुनि-सेवा-अभिलाषी रे।। ११. जिण धरणी पर अद्भुत मघवा, मूल रूप अवतारी रे। . भोगविरागी कांचनत्यागी, बलि सुरपुर संचारी रे।। १२. रायबन्द जय मघ अघवारण, वारणरिपु गुरु विचऱ्या रे।
वर उपदेश हमेश सुणी जन, तन-मन-संकट विसऱ्या रे।। १३. इस अनोखै स्थल रो नाम, मरुस्थल नहीं सुहावै रे।
स्वर्णस्थल भल भावै भाखत, कुण-सी बाधा आवै रे।। १४. बीकानेर से'र रजधाणी, 'बीकां" री अति छाजै रे।
रणबंका राठोड़ ठोड़ तिण, डूंगरसिंह नृप राजै रे।। १५. छापुर पुर सुरपुर सम सुन्दर, वर्जित व्याधि-विपद स्यूं रे।
बाहिर ताल विशाल बण्यो मनु, जिन-जन्मोत्सव-मद स्यूं रे।। १६. सकल वंश अवतंस विलक्षण, ओसवंश अविकारी रे।
बसै शाह बुधसिंह चोपड़ा, बारू नख कोठारी रे।। १७. पंच तनूज' मनूज-सरूपे, शा-घर-घरणी जाया रे। ___ हरस बधाया मंगल गाया, मोच्छब अधिक मनाया रे।। १८. पांच पुत्र में दूजो मन्दन, मूलचन्द इण नामे रे।
सरत स्वभावी नहिं मायाकी, महिमा ठामो-छामे रे।। १६. तिणी देशे भावुक वेशे शा'जी अन्य पिछाणो रे।
नरसिंहदास वास 'कोटासर' जात लूणिया जाणो रे।। २०. तिण घर छव सुत तीन सुता में, छोटी छोगां बाई रे।
जुगती जोड़े लाडे-कोडे, मूलचन्द नै ब्याही रे ।। २१. अविहड़ नेहे दम्पति गेहे, रहता बहता साता रे।
सांसारिक सुख विलसत उलसत, काल न जाण्यो जातां रे।। २२. वय युवती दुवतीस बरस री, पाई अंग निरोगां रे।
शुभ संजोगां विगत-विजोगां, प्रसव्यो नन्दन छोगां रे।।
१. बीका सरदार २. फर्शरामजी, मूलचन्दजी, खूबचन्दजी, दुलीचन्दजी और डालचन्दजी ३. नरसिंहदासजी पहले कोटासर रहते थे। वि. सं. १६४० से वे श्रीडूंगरगढ़ आकर बस गए। ४. छोगमंजी का विवाह वि. सं. १६१६ के समय ढंढेरू ग्राम में हुआ। स्थानीय ठाकरों के __साथ विरोध होने के बाद वे वि. सं. १६१६, सावन महीने में छापर आकर बस गए।
६२ / कालूयशोविलास-१