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२३. विक्रम उगणीसे तेतीसे, वर्षे फाल्गुन मासी रे। - सुद पख दूज रु वार बृहस्पत, कन्या लगन विलासी रे। २४. माता मन में मोद न मायो, निरखी निज नानूड़ो रे।
निलवट नीको अष्टम-शशि-सम, लोचन-युगल चरूड़ो रे। २५. शुभ लक्षण कर लक्षित रक्षित, कोठारी-कुल केतू रे।
भावी तेरापंथ-पथाधिप, भवसागर रो सेतू रे।। २६. रंग विलास उजास घरो-घर, सज्जन सहु हुलसावै रे। जबर भाग-संजोगे जननी, अनुपम नन्दन पावै रे।।
सोरठा २७. जन्मकुण्डली खास, नेष्ट-निर्मिता' है निमल। शुभ-ग्रह-पूरित वास, चतुरां मति चकरावणी।।
मन्दाक्रान्ता-वृत्तम् २८. तार्ती येके सहजभुवने मंगलो वासमेति,
तूर्ये स्थाने गुरुरथ पदे पञ्चमे सौम्यशुक्रौ। षष्ठे राहुः शनि-रवि-युतः सप्तमे कौमुदीशः, केतुश्चान्त्ये ग्रहगतिरियं लग्नमत्रास्ति कन्या।। जन्म-कुण्डली
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बु.शु.
र.श.रा.
सुणिए सयणां! रचित सुवयणां,
गुरुव्याख्यान सुरंगो रे, सयाणां! १. प्रश्न पूछकर बनाई गई कुण्डली को नेप्ट-निर्मित कहा जाता है। २. लय : म्हारै रे पिछोकड़
उ.१, ढा.१ / ६३