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________________ ढाळः १. दोहा १. कालू शासनकल्पतरु, कालू कलानिधान। कालू कोमल कारुणिक, कालू गण की शान ।। २. कालू छोगां-मूल-सुत, कालू मघवा-शिष्य। ___ कालू डालिम-पट्टधर, निज व्यक्तित्व विशिष्य ।। ३. धर्मसंघ नै दी सुगुरु, एक नई-सी मोड़। ___जिज्ञासू जनता-हदय, जिज्ञासा री दोड़।। ४. स्वल्प मात्र भी यदि हुवै, समाधान-संधान। तो अनुभबूं कृतार्थता, ओ उद्देश्य प्रधान ।। ५. जनम चरण गुरुपदवरण, वरणन सरस सुवाद। षडुल्लासमय सांभलो, तज प्रमिला परमाद ।। 'सुणिए सयणां! रचित सुवयणां मुरुध्याख्यान सुरंगो रे, सयाणां! ६. इण ही जम्बूद्वीपे दीपे, दक्षिण भरत दिदारू रे, सयाणां! देश मरुस्थल जल-थल-विश्रुत, आर्यक्षेत्र-अधिकारू रे, सयाणा! ७. निकट-निकट बहु शहर सुरंगा, इकरंगा जिण देशे रे। बेळू-पर्वत पर्वत-सवया, प्रवया परिणत-वेशे रे।। ८. रयणी रेणुकणां शशि-किरणां, चळकै जाणक चांदी रे। ___मनहरणी धरणी यदि न हुवै अति आतप अरु आंधी रे।। ६. जिण जनपद में अनुपद निवसै, जन जिनशासन-राता रे। गुरु भिक्खण को 'सिक्को' धारी, भारी विलसै साता रे ।। १. लय : म्हारै रै पिछोकड़ बाह्यो रे कुसुम्भो २. देखें प. १ सं. १ ३. देखें प. १ सं. २ ४. देखें प. १ सं. ३ ५. देखें प. १ सं. ४ उ.१, ढा.१ / ६१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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