________________
का अच्छा प्रचार-प्रसार किया। छोटे-छोटे साधु-साध्वियों की तत्त्व-निरूपण शैली से प्रभावित लोगों ने उनकी तुलना गुदरीवाले गोरख से की। यह नवम गीत का प्रतिपाद्य है।
दसवें गीत के प्रारम्भ में मुनि जोरजी के अनशन का उल्लेख है। गुरु के आदेश बिना की जानेवाली हर क्रिया अभिशाप बन जाती है, उसमें सफलता नहीं मिलती। तेरापंथ की इस घनीभूत आस्था के अनुसार जोरजी का अनशन सफल नहीं हुआ।
_ वि.सं. १६८५ में कालूगणी का चातुर्मास छापर था। एक ओर चाड़वास एवं बीदासर, दूसरी ओर पड़िहारा, तीसरी तरफ सुजानगढ, बीच में छापर, इस प्रकार पांच गांवों का झुण्ड-सा है। वहां रेवतमलजी नाहटा के मकान में चातुर्मास था। मकान के निकटवर्ती प्रवचन पंडाल में 'जोया' नामक जीवों का भयंकर उपद्रव एक इतिहास बना गया।
उस चातुर्मास में बाहर से यात्री बहुत आए। मुनि तुलसी आदि बाल साधुओं ने कालूगणी के पास सिद्धान्त-चन्द्रिका का अध्ययन शुरू किया। उन दिनों की स्मृति मात्र ने ग्रन्थकार को भावविभोर बना दिया।
उस वर्ष का मर्यादा-महोत्सव लाडनूं था। उस महोत्सव के अवसर पर पूज्य कालूगणी सहित सत्तर साधुओं को एक साथ ज्वर हो गया। मुनि अभयराजजी का अनशन और निकटवर्ती गांवों में परिभ्रमण के उल्लेख के साथ प्रस्तुत गीत सम्पन्न हो गया। ___ग्यारहवें गीत में फतेहपुर, रामगढ़, थैलासर, चूरू और सरदारशहर में कालूगणी के प्रवास का वर्णन है। फतेहपुर में सम्पर्क में आनेवाले लोगों के बीच प्रश्नोत्तर का ज्ञानवर्धक क्रम चला। विद्वानों की नगरी रामगढ़ में अनेक विद्वानों की शंकाओं का समाधान हुआ। चूरू में चम्पालालजी कोठारी ने महावीर की चूक का प्रश्न उपस्थित किया। कालूगणी ने स्थानांग सूत्र की चौभंगी का हवाला देते हुए तीर्थंकरों को आत्मानुकम्पी बताया। आत्मानुकम्पी साधक दूसरे की अनुकम्पा कर लब्धिप्रयोग करे तो वह आगम-सम्मत नहीं है। प्रस्तुत प्रसंग को लेकर लम्बी चर्चा चली। सरदारशहर-प्रवास में एक साथ सोलह दीक्षाओं का कीर्तिमान बना।
कालूगणी की यात्रा के प्रभाव को उजागर करनेवाला बारहवां गीत लाडनूंचातुर्मास की कुछ घटनाओं को अपने में समेटे हुए है। उस चातुर्मास में मुनि तुलसी ने सिद्धान्त-चन्द्रिका नामक संस्कृत व्याकरण कंठाग्र किया। प्रातः वे कालूगणी के पास पाठ पढ़ते और रात्रि में चन्द्रमा के प्रकाश में घंटों-घंटों बैठकर कंठस्थ करते तथा मुनि भीमराजजी के पास दशवैकालिक सूत्र और सिन्दूरप्रकर
४६ / कालूयशोविलास-१