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का वाचक है। ऐसे प्रयोग कवि के संस्कृत - प्रेम के परिचायक हैं ।
आचार्य पदारोहण का समारोह सम्पन्न होने के बाद पहला काम होता है, आचार्य भिक्षु द्वारा अपने युवाचार्य के लिए लिखित 'लिखत ' की प्रतिलिपि करवा कर उसमें ‘भारीमाल' के स्थान पर 'कालू' नाम अंकित कर सब साधुओं के हस्ताक्षर करवाना। यह उपक्रम भिक्षुशासन की अविच्छिन्न परम्परा का सूचक है । कालूगणी ने आचार्य पद का दायित्व संभालते ही प्रातः उत्तराध्ययन और रात्रि में रामचरित्र का व्याख्यान प्रारम्भ कर दिया ।
कालूगणी ने जिस दिन अपना दायित्व संभाला, उस दिन 'छक्कम छक्का' हो गया, छह छक्कों का योग मिल गया । कवि ने छह छक्कों की कल्पना इस प्रकार की है - वि. सं. १९६६ में दो छक्क हैं । चैत्र मास से वर्ष का प्रारम्भ किया जाए तो भाद्रव छठा मास आता है । एक छक्क महीने का । वह पूर्णिमा का दिन था। १५ के दो अंकों का योग १+५ =६ होता है, एक छक्क तिथि का । उस समय कालूगणी की अवस्था ३३ वर्ष की थी, ३+३=६ | एक छक्क अवस्था का । एक छक्क यानी परिषद का ठाट । इस प्रकार अनायास ही छह छक्कों का योग कालूगणी की संचित पुण्यवत्ता का प्रतीक है।
कालूगणी के वक्तृत्व एवं व्यक्तित्व के विशिष्ट गुण आचार्य के छत्तीस गुणों के योग से जन-जन के आकर्षण केन्द्र बन गए । पूर्णिमा के चन्द्रमा को देखकर समुद्र में ज्वार आता है, वैसे ही पूर्णिमा को उदित कालूगणी रूप चन्द्रमा के उदय से धर्मशासन में विकास के ज्वार की संभावना की जा सकती है। यह समग्र विवेचन तेरहवें गीत में है ।
चौदहवें गीत का प्रारम्भ लाडनूं से विहार के साथ होता है । उस समय सब सन्तों के पास समुच्चय की दो-दो पोथियों का वजन था । मुनिश्री मगनलालजी के अनुरोध पर कालूगणी ने वृद्ध सन्तों का वजन एक पोथी कर करुणा रस की वर्षा की । चतुर्मास की समाप्ति हो जाने से बहिर्विहारी सिंघाड़ों का आगमन होने लगा। उनमें साध्वी कानकुमारीजी के सिंघाडे ने बीकानेर से सुजानगढ़ पहुंचकर दर्शन किए। मातुश्री छोगांजी उनके साथ थीं। अपने पुत्र को आचार्य के रूप में देख माता को अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति हुई । कालूगणी ने भी माँ के उपकार का स्मरण कर उन्हें कई प्रकार की बख्शीशें कीं । साध्वी कानकुमारीजी को भी बोझ और बारी की बख्शीश की । यह वर्णन प्रस्तुत गीत में उपलब्ध है 1 कालूगणी प्रथम मर्यादा - महोत्सव करने के लिए बीदासर पधारे। वहां साधु-साध्वियों के सिंघाड़ों की पृच्छा - उनके आचार, विचार, व्यवहार, अध्ययन
कालूयशोविलास-१ / २६