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डालगणी ने अपने युवाचार्य को न कभी महत्त्व दिया, न प्रशिक्षण दिया और न विशेष दायित्व सौंपा, जिससे किसी को थोड़ा भी अहसास हो सके । डालगणी के विशेष कृपापात्र लाडनूं के ठाकुर आनन्दसिंहजी के अतिरिक्त उन्होंने जीवनभर इस रहस्य को गुप्त ही रखा। डालगणी ने ऐसा क्यों किया ? यह प्रश्न स्वयं ग्रन्थकार ने उपस्थित किया है। इस सन्दर्भ में डालगणी द्वारा कालूगणी के मूल्यांकन से सम्बन्धित अनेक तथ्यों की सूचना देते हुए निष्कर्ष निकाला गया है कि इसमें डालगणी की विलक्षण काम करने की मनोवृत्ति ही मूलभूत कारण है । इस रोचक वर्णन को दसवें गीत में पढ़ा जा सकता है ।
ग्यारहवें गीत में डालगणी के स्वास्थ्य की स्थिति, उनका मनोबल, उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षा और बख्शीशों का वर्णन है । भाद्रपद शुक्ला द्वादशी के दिन शरीर की स्थिति बहुत नाजुक हो गई । कालूगणी ने डालगणी को प्रतिक्रमण सुनाया और अवसर देखकर अनशन करा दिया। देखते-देखते डालगणी पार्थिव देह को छोड़ परलोकगामी हो गए। दूसरे दिन उनका अन्त्येष्टि संस्कार अच्छे ढंग से सम्पन्न हुआ । यह प्रस्तुत गीत का प्रतिपाद्य है ।
डालगणी का स्वर्गवास होने के बाद मुनिश्री मगनलालजी ने कालूगणी से पट्टासीन होने का अनुरोध किया। कालूगणी इसके लिए तैयार नहीं हुए । उन्होंने डालगणी द्वारा लिखित पत्र देखने का परामर्श दिया । किन्तु मुनिश्री मगनलालजी ने अत्यधिक आग्रह कर उन्हें पट्ट पर बिठा दिया और उसके बाद डालगणी द्वारा लिखित पत्र का वाचन कर सबको आश्वस्त कर दिया। कालूगणी के पदाभिषेक के लिए पूर्णिमा की तिथि निर्णीत हुई । शुक्ल पक्ष की द्वितीया का जन्म और पूर्णिमा का पदारोहण समारोह ग्रन्थकार कवि की कल्पना के पंखों पर सवार होकर एक अद्भुत आभा बिखेर रहा है । बारहवें गीत की बत्तीस गाथाओं में अत्यधिक सरसता के साथ पट्टोत्सव का वर्णन हुआ है 1
कालूगणी तेरापंथ संघ के आठवें आचार्य थे । आठ की संख्या को सामने रख ग्रन्थकार ने जैन सिद्धान्त के आधार पर आठ संख्या वाली अनेक बातें प्रस्तुत कर दीं। इससे सहज ही पाठक की ज्ञानवृद्धि हो सकती है । तेरहवें गीत के प्रथम दोहे में मौली शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। प्रथम मौली शब्द का अर्थ है कालूगणी । प्रस्तुत शब्द का यह अर्थ सहजगम्य नहीं होता। संस्कृत व्याकरण में दशरथस्य अपत्यम् दाशरथिः की तरह मूलस्य अपत्यम् मौलिः शब्द निष्पन्न होता है । शब्द का राजस्थानीकरण करने पर मौली हो गया। दूसरा मौली शब्द मुकुट
२८ / कालूयशोविलास-१