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________________ जितना कठिन है, उतना ही मेरे लिए है। जरूरी काम है इसलिए जाना पड़ेगा।' __ पत्नी बोली- 'आप तो वहां व्यापार में उलझ जाएंगे। मैं यहां बैठी-बैठी करूंगी क्या?' यह सुनकर सेठ ने कहा-'अपने यहां एक गोदाम कपास से भरा है। तुम दिनभर बैठी-बैठी सूत कातते रहना। काम में मन लग जाएगा तो वर्ष पूरा होता ही दीखेगा।' पति की अनुपस्थिति में पत्नी ने गलत रास्ता ले लिया। वह दुश्चरित्रा हो गयी। दिन-रात ऐश और विलास । कौन पति को याद करे और कौन कपास काते? समय अपनी गति से बह रहा था। सेठानी की आंखें तब खुलीं, जब उसे संवाद मिला कि सेठजी अपनी एकवर्षीय यात्रा पूरी कर घर पहुंच रहे हैं। सेठ के आगमन का संवाद सेठानी के लिए महाभारत बन गया और सारी व्यवस्था उसने ठीक कर ली पर काते बिना कपास का सूत तो बन नहीं सकता था। आखिर उसने एक षड्यंत्र रचा और अपने पति को फंसाने के लिए निकल पड़ी। चण्डी देवी का भयावह रूप, सिर पर धधकते अंगारों से भरी हंडिया और हाथ में नंगी तलवार। सेठानी अपने पति के रास्ते में आकर खड़ी हो गई। ज्योंही सेठ उधर से गुजरा, वह कड़ककर बोली-'अरे यायावर! बिना मेरी आज्ञा इस कान्तार से गुजरने वाला तू कौन है?' सेठ कांप उठा। कुछ पूछने का साहस उसे नहीं हुआ। हाथ जोड़े, पांवों में सिर रखा, गिड़गिड़ाया, पर देवी का कोप शांत नहीं हुआ। उसके हाथ में नंगी तलवार देख सेठ का सिर चकराने लगा। भय के कारण उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। फिर भी वह बचा-खुचा साहस जुटाकर बोला, मां! भूल हो गई। क्षमा करो। चाहो तो कोई प्रायश्चित्त दे दो। सेठानी इसी अवसर की प्रतीक्षा में थी। वह कुछ रोब प्रदर्शित करती हुई बोली 'मैं हूं देवी चण्डिका, माथै मोटी हंडिका। थारो या पत्नी रो नाश, कात्यो-पीन्यो करूं कपास।।' -देवी ने प्रायश्चित्त के तीन विकल्प सुझाए१. इस तलवार से तुम्हारी गरदन उतार दूं। २. तुम्हारी पत्नी को बलि का बकरा बना दूं। ३. तुम्हारी पत्नी द्वारा काते गए सूत को कपास बना दूं। भद्र श्रेष्ठी अपनी पत्नी की वंचना को नहीं समझ सका। उसने अनुनयपूर्ण शब्दों में कहा-'देवि! तीसरा विकल्प मुझे स्वीकार है।' देवी बोली- 'तथास्तु! ऐसा २७४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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