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ही होगा। पर देखो दो घंटा तक यहां से हिलना मत।'
वहां से लौटकर सेठानी घर पहुंची और अपने चण्डी के मुखौटे को उतार फेंका। दो घंटे बाद वहां से चलकर सेठ घर पहुंचा। भय के कारण उसे ज्वर हो गया था। मध्याह्न की धूप और भूख का भी प्रभाव था। दयनीय दशा में उसने घर में प्रवेश किया। सेठानी प्रतीक्षा में बैठी थी। सेठ की हालत देखते ही वह आंसू बहाती हुई बोली-‘आपको शरीर का कोई ध्यान है या नहीं? यह क्या हाल बना रखा है?'
सेठ बोला-'आज तो तुम्हारे सौभाग्य से ही बचकर आया हूं। मार्ग में देवी कुपित हो गई। वह मेरे या तुम्हारे प्राण लेकर ही संतुष्ट होने वाली थी। किन्तु एक बात पर राजी हो गई कि तुमने साल भर जो सूत काता है, उसे कपास में बदलकर जीवन-दान दे सकती हूं।'
सेठानी अन्यमनस्क होकर बोली-'तो क्या मेरा साल भर का परिश्रम व्यर्थ जाएगा?' सेठ ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा-'प्राण बचे लाखों पाए। चलो, देखें तुम्हारे सूत का क्या हाल है?' पति-पत्नी दोनों गोदाम में गए। वहां कपास
का ढेर वैसे ही लगा था, जैसे सेठ छोड़कर गया था। पत्नी ने व्यंग्य भरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा-आपकी देवी ने मेरा कात्या-पीन्या कपास कर दिया।'
४८. लाडनूं में हर्मन जेकोबी ने आचार्यश्री कालूगणी के दर्शन किए। वहां तीन दिन रहकर उन्होंने जैन आगम, जैनसाधना-पद्धति, तेरापंथ की दीक्षा तथा कालूगणी के व्यक्तित्व का अध्ययन किया। नए प्रदेश और नए संपर्क में उन्हें जो अनुभव हुआ, उसकी चर्चा उन्होंने लाडनूं में ही दिए गए एक वक्तव्य में की। वक्तव्य अंग्रेजी भाषा में है। उसे यहां अविकल रूप से उद्धृत किया जा रहा है
Ladies and Gentlemen
I have now been three days in your town of Ladnun, where I have been invited by the Jain Swetambar Terapanthi Community. I have enjoyed your great hospitality and I gladly avail myself of this opportunity to offer my cordial thanks to all who have come from near distant places to meet me and who have vied with each other to make my stay in Ladnun a very plesant and successful one. As I am told, I am the first European, who came to this town. May
परिशिष्ट-१ / २७५