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________________ ३. साध्वीश्री अणचांजी वि. सं. १६६६ बीदासर में ४३. मुनि सोहनलालजी, चूरू के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित दोहे १. सुघड़ लेख वाचक सुघड़, सुघड़ काव्य जल्पंत। ___ शासन रो सेवक सुघड़, सुघड़ सोहनो संत।। २. सद्गुरु गुणगायक सुघड़, कलाकुशल मतिमंत। 'सिरेकुंवर' सति ‘धन' तनय, सुघड़ सोहनो संत ।। ३. हिम्मत कदे न हारतो, दिल रो बो दाठीक। ___अकस्मात सुरपथ गयो, मुनि सोहन निर्भीक।। ४४. मुनि चंपालालजी (मीठिया) के संसारपक्षीय कनिष्ठ भ्राता मुनि चुन्नीलालजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित सोरठे १. विश्वासी दृढ़निष्ठ, वर आचार-विचार में। चंपक-भ्रात कनिष्ठ, चावो चुनीलाल मुनि।। २. चम्माली वर्षांह, संयम पाल्यो सांतरो। अपनी दूजी बांह, ज्यूं बंधव साथे रह्यो।। ३. आखिर अनशन धार, च्यार दिनां चेतै सहित। कियो आत्म निस्तार, जोजावर सुसमाधि में।। ४५. साध्वी छोटांजी की तपस्या, संलेखना और अनशन बहुत प्रभावशाली रहे। उन्होंने एक तेरह को छोड़कर पंद्रह तक लड़ी की। ३१ दिन संलेखना तप किया। ३५ दिन तिविहार अनशन और दो घंटे २० मिनट चौविहार अनशन किया। उनकी यह अंतिम ६६ दिन की तपस्या पूर्व-निर्धारित-सी प्रतीत होती है। ४६. वि. सं. १६२८ (ई. सन् १८७१) में हर्मन जेकोबी पहली बार भारत आए थे। दूसरी बार वि. सं. १६७० (ई. सन १६१३) में वे जोधपुर जैन साहित्य सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए जोधपुर आए। उस समय चूरू-निवासी केशरीचंदजी कोठारी उनसे मिले। उन्होंने तेरापंथ और कालूगणी का परिचय देकर उनके दर्शन करने की प्रेरणा दी। सं. १६७० फाल्गुन शुक्ला १० को हर्मन जेकोबी लाडनूं में कालूगणी से मिले। ४७. सेठ को व्यवसाय की दृष्टि से देशान्तर जाना था। घर में पत्नी के अतिरिक्त और कोई नहीं था। पति के प्रस्थान की बात सुन वह बोली-'आपके बिना एक दिन भी बिताना कठिन हो जाता है। यह एक साल का लंबा समय कैसे कटेगा?' पति ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा-'समय काटना तुम्हारे लिए परिशिष्ट-१ / २७३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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