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आज म्हारै आंगणियै में मोतीड़ां मेह बरसै रे।
प्रवचन-घन गुरुदेव रो।।
१४. बड़े खेद की बात, अधरम आ उतर्यो मैदान में,
जामो पह- धरम रो। दया-दान रै नांवै चालै शोषण धर्मस्थान में,
__ मारग मिथ्या भरम रो।। १५. चींट्यां रै बिल चून, चूसै खून मानवता रो रे,
जड़ता भारी जगत में। ‘एरण-चोरी सुई-दान', अड़ीकै स्वर्ग-किनारो रे,
देखो भगती भगत में।। १६. जैनधर्म रो मूल अहिंसा, संयम-तप-मय साचो रे,
__शाश्वत शुद्ध सरूप में। प्राणिमात्र नै सुख रो जीवन जीणो लागै आछो रे,
भैक्षव-मत अनुरूप में।। १७. लोकोत्तर लौकिक धरमा नै एक हि रूप पिछाणै रे,
ताणै खींचाताण स्यूं। ‘घी तंबाकू मेळ मिलावै' मेली अकल अडाणै रे,
मूरख अपनी बाण स्यूं।। १८. गो-बाड़ो अरु ओतू-ऊन्दर कौतुक रूप उदारण रे,
प्रतिपल मिश्रण रा बण्या। आत्म-उधारी दुनियादारी भिन्न-भिन्न है कारण रे,
__ धर्मशास्त्र में संथुण्या।। १६. साता स्यूं साता बंधै ओ चिंतन अतथ अधूरो रे,
जिनदर्शन-संदर्भ में। श्रावक रो खाणो-पीणो है, तप संजम स्यूं दूरो रे,
भोग असंजम-गर्भ में।। २०. अभयदान भगवती-अहिंसा से संबंध सदा रो रे,
आध्यात्मिक आराधना। पण एकण नै पुचकारै, दै. एकण नै दुत्कारो रे,
आ सांसारिक साधना।। १. लय : तेजा २. देखें प. १ सं. ८७
२०४ / कालूयशोविलास-१