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बड़े खेद की बात हृदय बेभान जो, अधरम उतर्यो धरम नाम मैदान में ।। ७. दया दान जो जैनधर्म रा मूल जो,
मूलोच्छेद-करण प्रतिचरण उम्हावियो । हीन- दीन दुःखित प्राणी प्रतिकूल जो, जग-विपरीत पन्थ क्यूं किंयां चलावियो ? ८. ऊंदर ऊपर आवै ओतू स्थूल जो, गौ-बाड़ां आगी लागी आंख्यां लखी संरक्षण नहिं करणो धर्म-उसूल जो, इसड़ो तत्त्व बतावै तेरापथ - पखी ।। ६. साता दीधां पड़े असाता बन्ध जो, धरम न श्रावक नै करवाणो पारणो । अभय अहिंसा रो शाश्वत संबंध जो, सो पिण सावज मरतो जीव उबारणो ।। १०. पड़िमाधारी पोख्यां पाप प्रतीत जो, भीखणजी री देखो बड़ी वदान्यता । मात-पिता नै सेवै पुत्र विनीत जो, ओ पिण खातो अधरम रो आ मान्यता ।। ११. सावज - निरवद अनुकंपा-द्वय धार जो,
त्रिशला - सुत' री चूक कहै चोगान में । मिथ्यात्वीरी करणी निपट निसार जो, निरवद कहै है अब लों अज्ञान में ।। १२. छठै गुणठाणै छव लेश्या धार जो, देशव्रती में क्रिया अप्रत्याख्यान री । श्रावक नै नहिं सूत्र - पठन अधिकार जो, बिल्कुल रुकी शृंखला आगम-ज्ञान री ।। १३. समये - समये परिषदि या एकांत जो, करै टिप्पणी तेरापथ - मन्तव्य पर । श्री कालू गुरु समाधान चित- शान्त जो, कर-कर भ्रान्ति मिटावै निज कर्तव्य सर ।।
१. भगवान महावीर
उ.३, ढा.६ / २०३