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कोई प्रत्युत्तर भाखो मती जी,
अनुभवस्यो थे फल अन्यून।। ३३. आवण ल्यावण वाळा बावरी जी,
इण अवसर पर जो बदनीत। तिण री फल-निष्पत्ती जो हुसी जी,
समये देखीज्यो वर रीत।। ३४. दूरदर्शिता रो परिचय दियो जी,
इण शिक्षा-दीक्षा-मिष स्वाम। गुरु-मेधा कुण मेधावी लखै जी,
ज्यूं क्षीरोदधि रो आयाम ।। ३५. तहत वचन कहि गुरु वंदन करी जी,
सहु मुनि पहुंच्या निज-निज ठाम। तीजे उल्लासे 'तुलसी' कही जी, सम्प्रति पंचमि ढाळ सुयाम।।
ढाळः ६.
दोहा १. आरंभ्यो आवागमन, प्रतिपक्ष्यां रे द्वार। __द्वेष-भाव-दूषित-मना, कइ जन बिना विचार।। २. केक प्रगट अविवेक युत, कइ छिप-छिप दिल छेक।
कर्णेजप गुपसुप करै, हियड़े हिचकिच-हेक।। ३. कइ मानव नव रूप नै, निरखण धरै उमंग। ___अभिनव नाटक देखणे, ज्यूं समुदित जन-संघ।। ४. केक एक संयोग स्यूं, कई कुतूहल काज।
कूप-भेक आरेक कर, निज में कइ निष्काज।। ५. सहु समक्ष प्रतिपक्षपति, प्रतिदिन करै सलक्ष। परिषदि टीका-टिप्पणी, तेरापंथ-विपक्ष ।। ६. 'ओ श्रावकजी! यूं मुख मधुराहान जो,
विरुवी वाणी बोलै अपणी शान में।
१. लय : प्रभुवर आवी वेलां क्यारे
२०२ / कालूयशोविलास-१