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२५. रेसां दान-दया री जी, निखरी न्यारी-न्यारी जी,
श्री भीखण-गण-वारी जी, नंदन-वन-अनुहारी जी।
ढूंढ-ढूंढ जग-अंखियां हारी जुडै न कोई जोड़।। २६. जै सामाजिक नाता जी, रेसी आता-जाता जी,
खुल्ला है जग खाता जी, सहस्यां ठंडा-ताता जी।
धर्म अनंत सुखां रो दाता मिलै न कीम्मत कोड़।। २७. तेरापथ री एकी जी, निर्मल निरुपम नेकी जी,
जग की एकी छेकी जी, अकथनीय उल्लेखी जी।
पीढ्यां-दर-पीढ्यां रो म्हारो केकी घन संबंध।। २८. जिण गामे नहिं जाणो जी, क्यूं मारग पूछाणो जी?
देखां अपणो भाणो जी, खुश दिल खाणो खाणो जी।
गलत तत्त्व प्रश्रय दे पाणो ओ मोटो अपराध ।। २६. नहीं स्वयं तो भटकां जी, सेण-सगां नै हटकां जी,
साच सुणावां सटकां जी, नहिं कोइ खावै बटकां जी। क्यूं अब अधर-बीच में लटकां श्री कालू-गुरु साझ।।
दोहा -
३०. परतख द्विधा प्रतिक्रिया, देखी है दो टूक।
स्वामी स्वयं समाचरै, शिक्षण-व्यूह अचूक ।।
'सद्गुरु-शिक्षा सुध मन सांभळो जी। सुविहित त्रैकालिक हित जाण।।
३१. श्रमण-सभा आमंत्री इक दिने जी,
गुरुवर मधुर सुणावै सीख। आया इतर-मतालंबी अठै जी,
सज-धज ले उद्देश्य अलीक।। ३२. मत बतळावो मारग में मिल्यां जी,
यदि बतळावै तो भी मून।
१. लय : पीपली
उ.३, ढा.५ / २०१