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ढाळः ५.
दोहा
१. भीनासर बीकाण रा, श्रावक आगीवाण। ___ मिलिया मिसलत-हित उचित, निज गुरुराज-ठिकाण।। २. थळी-देश-वासी घणां, विभव-विलासी लोक। ___ स्थानकवासी-मत-ग्रहण, है अभिलाषी थोक।। ३. तिण कारण इण अवसरे, जाणो बठै जरूर।
साहस स्यूं कारज सझै, नहीं घणो है दूर।। ४. श्रावक संघ उमंग स्यूं, करसी मदद महान। ___थळी देश हस्तांगुली होणो है आसान।। ५. प्रतिपन्थी है आपणो, पग-पग तेरापंथ। तिणनै पिण पड़सी खबर, जो बणसी विरतंत ।।
वेग पधारो अब थळी देश में जी। होजी कोइ! होसी बहु उपगार।। ६. बोलै श्रावक सब स्थिति सांभळी जी,
आयो अवसर आज उदार। चोमासो उत्तरतां चालिये जी, म्है पिण रेस्यां थांरी लार।। मति रे पधारो गुरु! थळी देश में जी।
गहराई स्यूं सोचो सार।। ७. पभणै तब कइ दाना मानवी जी,
नहिं ओ लागै उचित विचार। ओसवाळ वासी थळी देश रा जी, नहिं कोइ धारै थारी कार।। ८. क्यूं नहिं सुमरो तुम सिरिलालजी जी,
आया थळवट देश चलाय। पंथ-पूज्य परवासी जाण नै जी, कुण-सी मिली सफलता प्राय।।
१. लय : पीपली
१६८ / कालूयशोविलास-१