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४०. तेरापन्थ पन्थ रो सोहै, किल्लो चिहुं दिश चावो जी।
आज लगे पिण इणरै ऊपर, किणरो फव्यो न दावो जी।। ४१. शहरां-शहरां धन री नहरां, लहरां ज्यूं लहरावो जी।
घर-घर धीणो पय-घी पीणो, खाणो मक्खण-मावो जी।। ४२. शिक्षा रो नहिं जोर, अंधश्रद्धा रो शोर-शराबो जी।
सारी बागडोर इक कर में, चाहे जिंयां घुमावो जी।। ४३. आज प्रसंगे अखिल संघ में, उदयो द्वेधीभावो जी।
अद्भुत फूट कूटनीती स्यूं, उलटो मिल्यो बढ़ावो जी।। ४४. बणी अश्रद्धा पन्थ-पूज्य पर, घटग्यो आवो-जावो जी।
तिण कारण निरधारण कर, अवसर रो लाभ उठावो जी।। ४५. पुरा पुराणां मुनिवर स्याणां, कीधो स्वर्ग सिधावो जी।
सांप्रत तेरापंथ पंथ में, नान्हपणो अनुमावो जी।। ४६. म्है पिण तिण पथ रा अनुयायी, आया ले प्रस्तावो जी।
अवसर रा उपजाया उपजै मोती फिर पछतावो जी।। ४७. मोटी-मोटी मदद मिलैली, जरा न दिल घबरावो जी।
भूल-चूक महाराज! अनोखो मोको मती चुकावो जी।। ४८. अयि! अयि! चित्र! विचित्र कर्मगति खतरनाक जग खाबो जी।
टेढ़ी शूल गडी एडी में, कुचरै मूरख फाबो जी।। ४६. सारी बात विचार जवाहिर चमक्यो चित ललचावो जी।
नीम्बू नामे ज्यूं मुखड़ा में अम्बू रो उद्भावो जी।।
श्री गुरु-चरणां में।
५०. आमंत्रण सहज्यां मिल्यो भावुक जनता रो।
__ है शायद सफल प्रयास।। थळी देश सिक्को जमै ज्यूं-त्यूं आपां रो।
तो बणै बड़ो इतिहास।। ५१. निश्चित-सो निर्णय कर्यो चित लालच लाग्यो।
__ अब थळी देश दिशि जाण।। कालूयशोविलास में आंतर अनुराग्यो।
ल्यो चौथी ढाळ सुजाण।।
१. लय : वारू हे साधां री वाणी
उ.३, ढा.४ / १६७