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'मत कीजे, मत कीजे, बतका अविचारी, नहिं हितकारी ।।
३२. पारस्परिक विभेद भेद में, सौ झंझट लै संसारी। मत कीजे.
सामाजिक उलझन-सुलझन में, खूब करै थारी म्हारी।। मत कीजे, ३३. सौ सज्जन दो सौ दुसमण है, आ दुविधा है दुनियां री।
पिण तिण बिच में धर्मसंघ नै, ल्याणो कुण-सी हुसियारी।। ३४. नहिं हित लेश कलेश हि प्रत्युत, आ प्रवंचना है भारी।
है कटु सत्य नहीं कोई लेवैला इणमें पख थारी।। ३५. पछतावोला दुख पावोला, आ शिकार है सांपां री।
भैया! सांसारिक रकझक में, करो न धार्मिक धन ख्वारी।।
श्री गुरु-चरणां में। ३६. परामर्श चिंतन भर्यो चिंतक जन दीन्हो।
जो शुभ भविष्य आसार।। मानै क्यूंकर मानवी ताण्यां निज सीनो।
___ जो मान-मतंग सवार।।
३आवो जी आवो थे तो थळी देश में आवो जी, थळी देश में आवो थे मनमानी मोज मनावो, म्हारी अरजी पेश चढ़ावो जी, आवो जी...
३७. बीकानेर शहर तब पहुंच्या, करी ठिकाणो ठावो जी।
लाल जवाहिर माहिर निरखी, उमग्यो हृदय उम्हावो जी।। ३८. बोलै सब विध बात सझाई, पौरुष नयो जगावो जी।
___ अबकै झबकै-सै होवण द्यो, थळी देश पर धावो जी।। ३६. बीकाणै स्यूं बहुत निकट है, विकट न पंथ पतावो जी।
शीतकाल रो समय सामनै, एक बार पधरावो जी।।
१. लय : जय बोलो नेम जिनेश्वर की २. लय : चालो सहेल्यां आपां भैरूं नै मनास्यां हे ३. लय : वारू हे साधां री वाणी
१६६ / कालूयशोविलास-१